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इन विवेचन से यह सप्ट हो जाता है कि किसी भी भाषा में व्यवहत होने वाले पदो में प्रत्यय प्रन्यिा अनिवार्य है। देशीनाममाला की शब्दावली मे भी प्रत्यय प्रतिया इसके पदात्मकगन का महत्त्वपूर्ण प्रग है । इसमे सक्रलित सभी शब्द प्रमाल, एम्दवन हैं । इनके लिंग निर्णय मे भी प्रत्यय ही सहायक हैं।
यायव्यापार की दृष्टि से प्रत्यय प्रमुखत दो प्रकार के होते हैं :(1) पुत्लादक प्रत्यय
(2) विभक्ति प्रत्यय (1) ध्युत्पादक प्रत्यय
वे प्रत्यय है जो किमी घातु अथवा प्रातिपदिक के पूर्व या पश्चात सम्बल होगर, दूसरी घानु अथवा प्रातिपदिक का निर्माण करते हैं। (2) विभक्ति प्रत्यय
प्रत्यय है जो रिमी घातु या प्रातिपदिक के अन्त में जुडकर व्याकरणिका रको प्रस्ट वरते हैं। विभक्ति प्रत्यय के बाद फिर कोई प्रत्यय नही जुडता, नाव इन प्रत्ययो यो चरम प्रत्यय कहा जा सकता है। व्युत्पादक प्रत्ययो के आगे, विभक्ति प्रत्यय तो मा सकते हैं, किन्तु विभक्ति प्रत्यय के बाद व्युत्पादक प्रत्यय नहीं पाते हैं।
___ इन्हीं दो विभागों के अनुन्य देशीनाममाला के पदनामिक-गठन का विवेचन नीचे किया जा रहा है। सर्वप्रया विभन्नि प्रत्ययो का विवरण दे देना उपयुक्त होगा। (स) विमरित प्रत्यय
देशीनाममाता के मनी गन्द प्रथमा एकवचन के है। इनमे, ससा, विशेपण और या विपरामद की है। इनमें लगने वाले विभक्ति प्रत्यय इस प्रकार
यर पुगि, मा, विपण पोर रिया विशेपण पदो में लगने वाला नाए व मा प्रत्यय है।। मन में अकारान्त मन्दी के प्रयमा एक वचन के गि नो' पर देने की प्रवृत्ति रही है । प्राकृत मे सभी प्रकारान्त शब्दो के प्रसारमा प्रकारात पर दिया गया । देशीनामगाला के सभी लोका