Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 275
________________ [ 263 :-:- LATE: पोकारान्त सज्ञा तथा विशेपण m. समो वागब, नारः, प्रदसणो चोर', प्रवगो-कटाक्ष, ..-:", TET, उ न र:-प्रोपानो गामाधीश , कठिग्रोयो । faming:बर.- . न उवचित्तो नपगतः, उद्धवनो15.- Sam, णिपिरिन', उरलूडो-प्रास्टः, एकको पनि भूग. । नातिनी 'पोयागन्त' पुल्लिग शब्दी से युक्त गल' प; न दो और भी निविभक्तिक 'देशी' शब्द 13 ली गनुपनियन पोर 'पोरान्न' शब्दो का वाहुल्य, देशीनापीकोकासारवाला अपना से पूर्व की 'प्रोकार-बहुला रना है।न को प्रोकारान्त पदो में, अधिकाश तद्भव भी लिम प्रात भाता है। प्रकार देणीनाममाला की शब्दावली far प्रायन गोदगम्पत्ति है । इसे अपभ्रश से किसी प्रकार भी नहीं सोना । उदाहरण की गाथायोगे भी प्रथमा ए व के रूपो मे 'नो' रिमा प्रत्यय का व्यवहार प्रा है ! 'उकारान्त' प्रयोग एक भी नहीं हैं। प्रासन प्रोगगन प्ररमा एव व. या प्रयोग अत्यन्त विरल है। डा हरिवल्लभनयागी ने प्रपा में प्रोकारान्त प्रयोगो को प्राताभास माना है। वे पउमचरिउ की भूमिका में लिपने हैं-पत्ती एम वचन Fघ 'नो' बहुत विरल है, जो प्राकृताभास प्रोर प्रत्यकों के पूर्व या छन्द के अनुरोध से प्रयुक्त होता है।' इसी प्रकार सदेशरागत यो 'प्रोकाराम' प्रगोगो को भी भायारणी प्राकृताभास ही कहते हैं । डा वीरेन्द्र श्रीवास्तव भी 'प्रोकारान्त' स्पो को प्राकृत की विशेषता स्वीकार फरते हुए, इने प्रपत्र श मे (विशेषतया पश्चिमी अपभ्र ा मे) स्वल्प प्रयोग का विषय बतलाते हैं । वे लिखते हैं- 'वस्तुत.' पो 'अपभ्र श भाषा मे प्राकृताभास है । संस्कृत को अकारन्त प्रथमा एक वचन का विसर्गान्त रूप अवर्ण, वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, 1. उमचरिउ~-मायाणी की भूमिका, पृ 61 । 2. सदेशरामक भूमिका, पृ. 28

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