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वज [क -- गिक्त्रो चोर काञ्चनम् निष्क
(4-47 ) ।
विवलभी-स्थानम् ८ विष्कम्भ. ।
(7-88 ) ।
बन्द - पडिलवी - जलवहनम् प्रतिस्कन्बी (6-28)
इस प्रकार मध्यवर्ती स्थिति मे ग्राया हुआ 'क्ल' म भा ग्रा का पूर्णरुपेण श्रनुमरण करता है ।
ग----
यह कोमल तालव्य, नाद, घोप, अल्पप्राण, निरनुनासिक स्पर्शव है । देना मा में 'ग' से प्रारम्भ होने वाले 119 शब्द है । यादि, मध्य तथा उपान्त मे सर्वत्र इसकी स्थिति मिलती है ।
प्रारम्भवर्ती स्थिति मे इसमे मभा था. का 'ग' तथा प्रा. भा. आ. का 'प्र' प्रतिनिहिन मिलता है
गढो- दुर्गम ( 2-81), गलित्र - स्मृत (2-81), गवत्त - घाम (2-85) गग्र - गामणी ग्रामप्रधान ग्रामरणी (2-89), गामहरण - ग्रामस्थानम्-ग्रामस्थानम्
ग
-
(2-90)
मध्यवर्ती स्थिति -
प्र. भा द्या. ग गामगोहो- ग्रामप्रधान ( 289 ), गागेज्ज - मथित (2-88), यागेज्जा नवपरिणीता ( 2-88 ) 1
प्राभा या क7 ग रहगेल्ली - श्रभिलपित रतिकेलि (7–3), अगोदानव. काय ( 1-6 )
घ
म. मा. श्री गा- खग्गियो- ग्रामेश ( 2-69). थग्गया - चचु ( 5-26 ) । मग्ग-अग्गवेो-नदीपूर [ अग्रवेग ( 1-29) 1
ग्न7ग्ग-प्रग्गिन - इन्द्रगोपकीट अग्निकाय (1-53), इदग्गी-तुहिन
इन्द्राग्नि (1-80 ) 1
दुग्ग - रमाहि गृहीत [रग्राहितम् (1-137) । द्गग्ग - श्रोग्गलो- J-uer dia Lezme (1–151) | गंग-गवारी [गगरी ( 289 ), सग्गो - पश्चात् मार्गत. (6 - 111 ) ।
यह कोमलतालव्य, नाद, घोष, महाप्राण, निग्नुनासिक स्पर्शं व्यजन ध्वनिग्राम है। दे ना मा मे 'घ' से प्रारम्भ होने वाले शब्दों की संख्या कुल 61