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यह मूर्वन्च, नाद घोप, अल्पप्राण, निरनुनासिक स्पर्शवर्ग है । दे ना मा में डकार से प्रारम्भ होने वाले कुल 36 शब्द है । इन शब्दो मे 'ड' व्यजन ध्वनिग्राम अपने मूल तथा मून्यीकृत दोनो ही स्पो में मिलता है । एक शब्द डोपण (4-9) लोचन, मे यह प्रा भा पा के 'ल' का स्थानीय है । श्री पी वी रामानुज स्वामी 'डोग्रण' शब्द को स लोचन से निष्पन्न करते हैं।' प्रारम्भवर्ती स्थिति में 'ड'2 और 'ड' प्रा मा पा -ड- अडणी-मार्ग (1-16), अडयणा अडया-असती (1-18),
अडाडा बलात्कारः (1-64)। प्रा मा प्रा.-''- उट्टरपो-वृद्ध 11-123), उड्डसो-मत्कुणः (1-96),
उड्डहणो-चौर (1-101) । मध्यवर्ती-'इ' में प्रतिनिहित है प्रा भा प्रा -६- उड्डाणो-प्रतिशब्द Lउद्दारणो (त्रिविक्रम) स उद्वदन्(1-128) प्रा भा प्रा. - उम्मड्डा - बलात्कार ।उन्मर्द (1-97), डिड्डिरी भेक.
दर्दुर (4-9)। प्रा मा भा -त- कुड्ट-आश्चर्यम्।कौतुक (2-33), खड्डा-खानिः खात
(2-661 प्रा. मा. प्रा -6- कुटगिलोई-गृहगोवा । कुट-गिल (2-19) प्रा मा प्रा --स्य-गड्टी-यानगन्त्री (2-81) उपान्त मे 'ड' और 'ड' के उदाहरण इस प्रकार हैं---
-ट-अन्घाटो अपामार्ग (1-8), अण्डो-जार (1-18), अवडो
(1-16) - प्रायट्टी-विस्तार (1-64)!
यह मूर्यच नाद, घोष, महाप्राण तथा निरनुनासिक स्पर्श वर्ण है । दे ना. मा. में कार से प्रारम्भ होने वाले कुल 22 पाव्द हैं । इन शब्दो में एक भी शब्द
1 देना का ग्लामरी५.411 2. मध्याम्पिति मा '' यदी यहीं पा मा पा के 'ट' या स्थानीय झाकर भी व्ययत इमा
है -मानीस्ट् । प्रारत टार' मूत्र मी यही निर्दिष्ट करता है।