Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 268
________________ 256 मा ने भी इसकी सस्कृत की ही स्थिति रही। यह ध्वनि दो प्रकार की बनी गनी है (1) प्रत्येक वर्गीकरण महाप्राण व्यजन (द्वितीय तथा चतुर्थ) के मन्त में मुनानी पड़ने वाली अन्तिम प्राणवनि या कम ध्वनि (2) शुद्ध घी नि । यही गारण है कि न मा प्रा में उच्चारण सौर्य को दृष्टि में रखते हुए मे- नाना व्यननी व घर व और भ (इन्ही के अनुकरण पर फ भी) को 'ह' 7 दिया गया । देजीनाममाला के शब्दो में निहित 'ह' ध्वनि म भा था की 'ह' पनि पूर्णतया अनुगमन करती है। इन कोश में-ह-मे प्रारम्भ होने वाले शब्दो की मन्य7 90 है । इन की विनिय स्थितिया नीचे दी जा रही हैं। मा भवती स्थिति में 'ह' म मा या का ही अनुगमन है जिसमे प्रतिनिहित है महापागध्वनि-हैं- ये सभी शब्द 'देश्य' प्रकृति के हैं - म भा पा के नदारदो की भाति इम प्रारम्नवर्ती देय ह मे, प्रा भा पा भ, घ, फ, स, स्क पादिप्रतिनिहित नहीं है। उन्ट उदाहरण यहा दिये जा रहे है परप्पो बहनापी (8-61), हरी-शक (8-59:, हलहल-तुमुन. (8-74), काजाहलो मालिक (ग्राटा इन्छा करने वाला) (8-75) । मना नवा आन्य स्थिति में -ह- पूर्ण रूपेण म भा पा के ह 'का' अनुगमन पता: - जिममे प्रतिनिल है-ह- प्रनीहरी-दृती (1-35), अरिहइ-नूनम् (1-22), प्रहिन्नी-ज्वरः (1.10), टहरो-शिणु (4-8) । प्रा मा प्रा-7- दु-मुमो मांट । दुमुंग्य (5-44), धूमसिहा-नीहार धूमशिवा (5-61), मुहल , मुपम् (6-134) प्रणानरम् (1-13), ग्रह प्रथम (1-5),जगारीही-ऊर. । नरोद (3-44), जहण सब प्रोग्यम्।जवनागुक (3 45) जहानाग्रो जट । ग्याजात (3.41) पाहेजपायेषम् (6-24) घ- प्रमुबह शासनबन्ध (1-48), दहिफ-नवनीतम्। दधिपुप्पम् (5-55) दहियागे दधिना (536) 1 ना ~~-पनीर गुरु ( 2.75)। - नानामिदाम (424), गाहिविटेनो-जानामिच्छेदक (4-24), गिय निर्वापारम् निन्त (450।। -- नानपान 12-90) F- - - नाग (4-37)।

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