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प्रा मा प्रा याज अजुअलवण्णा-अम्लिकावृक्षाप्रयुक्पुण (1-48),
अजुग्रो-सप्तच्छ। अयुक (1-17) | उपान्त मे-ज-अोहज-नास्तीतिभरिणत गर्भाक्रीड़ा (1 156), गजो गाल (2-8)
मध्यवर्ती-उज्जला बलात्कार. (1-97), उज्जूरिय-क्षीण (1-112)
उपान्त मे-अवरिज्जो-अद्वितीय (1-36), वज्जा-अविकारः (7-32) मध्यवर्ती 'ज्ज' मे निहित हैप्रा मा श्रा-----प्रज्जो जिन आर्य (1-5), मज्जा सीमा मर्यादा (6-113) प्रा. भा पा.-ध- खज्जोयो नक्षत्रम्, खद्योत (2-69), खिज्जिय उपालम्म
Lखिद्य (2-74)। प्रा मा. प्रा - ज- गज्जरणसद्दो मृगवारणध्वनिः गर्जन शब्दः (2-88)
मज्जि अवलोक्तिमाजित (6-144) प्रा मा आ .- ज्य-पेज्जल-प्रमाण (माप) Lप्राज्य । 6-57) । प्रा भा मा. - ज-भाउज्जनातजाया (6-103)। प्रा. भा - ह्य-हिज्जो कत्य (बीता हुआ क्ल) Lह्य. (8-67) ।
यह तालव्य, नाद, घोष, महाप्राण, निरनुनासिक स्पर्श सवी व्वनि है। द ना मा मे इनमे प्रारम्भ होने वाले पुल 54 शब्द हैं। इनमे 53 शब्दो मे प्रारम्भवी 'झ' म मा श्रा. के 'झ' का अनुगमन करता है। शेष एक शब्द मे यह प्रा मा प्रा 'ल' का स्थानीय है। माग्भवती-- -
मक्कियं - वचनीयम् (3-55), भडी-निरन्तरवृष्टि. (3-53)। प्रा मा या क्ष7झ-भपणी-पक्ष्माक्षप् (3-54)। मध्यवर्ती 'म'-भ और 'झ' दो रूपो मे मिलता है
-झनझलिया-भोलिका (3-56), झममुमय-मनोदुःख (3-58) | दे ना मा के शब्दो मे उपान्त्य "क' बिल्कुल ही नहीं मिलता।
मध्यवर्ती - प्रजमम्सं-प्रारप्ट (1-13), प्रज्मासिय-दृप्ट अवज्झम-कटी
(1-56), भजकरी- चारण डालर्याप्ट (3-54) मन्यव 'ज' में निहित है - प्र. ना प्रा ह्या-प्रगुन्नहरो-रहस्यभेदी/गुह्यहर प्र उपसर्ग-त्रिविक्रम) (1-43) ।