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230 ] च-चत्रप्पर-असत्यं (3-4), चिरिचिरा-जलाधारा (3-13) ___उपान्त मे चिंचा-अम्लिका (3-10), चिचिणिचिंचा'-अम्लिका (3-10) । च्च - उच्चारो- विमल (1-97), उच्चु चो-दृप्त- (1-99), विच्चोग्रयो-उपधानम्
(6-68)। उपान्त मे - चिच्चो-चिपिटनास {3-9), चिच्ची-हुतासन (3-10), चोकुच्चो
सस्नेह (3-15)। प्र भा. या त्याच्च-कच्च-कार्य [कृत्य (3-2), पच्चुत्थ-बोया हुआ । प्रत्युप्त
(6-13), मच्चिलन -सत्य । सत्य (8-14)। र्चाच्च-चच्चा-स्थापक चर्चा (3-19) चच्चिक्क-भण्डित चचिका
(3-4) म्न27च्च-पच्चुहिन प्रस्तुत (दुहा हुग्रा) (6-25) |
त्पाच्च-उच्चारित्र । उत्पाटित (उखाडा हुआ) (1-14)। ये सभी विकार म ना आ के अनुरूप ही है ।
यह तालव्य, श्वास, अघोप, महाप्राण, निरनुनासिक, स्पर्श-सघर्षी ध्वनि हैं। दे ना मा मे इससे प्रारम्भ होने वाले शब्दो की सस्या 82 है। देश्य शब्दो मे प्रारम्भवती 'छ म भा पा के 'छ' का अनुगमन है । तद्भव शब्दो मे यह प्रा मा या 'क्ष' 'प' 'ग' का स्थानीय होकर पाया है। उदाहरण निम्न हैछ- डल्लो-विदग्ध (3-24) उदी शैया (3-24),
छटा-विद्युत (3-24) छवडी-चर्म (3-25)। प्रा मा पा पाछ छप्परगो-विदग्ध 7पटप्रन (3-24) ।
माछ-छल्ली-बक्श न्य (3-24), छमलो:-सप्तच्छद [शाल्मलि (3-25)। क्ष72 -- छुरमडी-सरहात । क्षुरमदं (नापित) (3-31)
छुरहत्यो-नापित झरहस्त (3-31)
छोहो- ममूह क्षोभः (3-39)। मध्यवर्ती स्थिति और उपान्त मे यह 'ई' और 'च्छ' रूपो मे मिलता है।
सबदी मन्द में 3-3 या1-4 दार एक ही ध्वनिग्राम का प्रयोग 'देश्य' शब्दो की मामान्य विगला हैमेन्दों का मन ट दना या उन्हें किसी भाषा विशेष से सम्बद्ध कर पाना
दन्हही नहीं यमम्मद माय है। पबितन मा माना है कि नवीन वम्त है।
मनपटर सेमी यापन किया जा मनसा है । म मा या. में प्री मा.या साछ के मी उदाहरण मिलते है जैसे छहा मुघा ।