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[ 99 57 मात्रायो वाली गाथा
18 टोलोव्व मा पड तुम उज्जाणे वाणिणीउ ज पुरग्रो । 12
15 टोतववणे टोक्करण हत्या मयण ग्गि जालाग्रो ।। 41414।।
ये ही दो प्रकार की गाथाए सम्पूर्ण 'रयणावली' के उदाहरण के पद्यो मे व्यवहृत हुई है। जहा तक इसके छदो मे दोप का प्रश्न है, वे स्वाभाविक ही हैं । इसकी अनेको गायायो मे किसी न किसी पाद मे एक मात्रा कम देखी गयी है। ऐसा विगेपत द्वितीय और चतुर्थ पाद मे हुआ है । परन्तु यह दोप लिपिकारो की असावधानी के कारण पाया होगा। 'रयणावली' की इन आर्यायो का सकलन विविध हस्तलिखित प्रतियो के अाधार पर हुप्रा है । इन प्रतियो के लिपिकारो की अनज्ञितावश ये भूलें रह गयी होगी । साहित्यिक या छन्द शास्त्रीय दृष्टि से 'रयणावली' का संकलन भी नही हपा था अत यह प्रमाद रह जाना स्वाभाविक है। जितने स्थलो पर ऐसे दोप आये हैं वहा एक मात्रा या फिर अनुस्वार मात्र बढा देने से छन्दो दोष दूर भी हो जाता है । इस एक दोप के अतिरिक्त 'रयाणावली' की गाथाए शास्त्रीय दृष्टि से अत्यन्त शुद्ध है। इनमे यति तथा मात्रामो का लघु-गुरु विधान भी नियम साध्य है । इस प्रकार छन्द की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ उच्च कोटि की साहित्यिकता से युक्त है।
भापा
'रयगावली' की भाषा निर्विवाद रूप से 'प्राकृत' है। इस ग्रन्थ की रचना भी हेमचन्द्र ने सिद्धहेमशब्दानुशासन' के पूरक ग्रन्थ के रूप मे किया था । उदाहरण की गाथाओ की भापा यदि देशी शब्दो को छोड़ दिया जाये तो, साहित्यिक प्राकृत है । साहित्यिक प्राकृत के सभी व्याकरणिक-विकार इन पद्यो की भाषा मे निरूपित किये जा सकते हैं । प्राकृत के पद्यो मे 'देश्य' शब्दो का प्रयोग, प्राकृतकाल मे 'देश्य' शब्दो के प्रयोग-वाहल्य की मान्यता को पुष्ट करता है। देश्य शब्दो के प्रयोग के ही कारण, इसकी भाषा अत्यन्त क्लिष्ट हो गयी है। इसके अनेको पद्यो का साहित्यिक सौन्दर्य भी इसी क्लिष्टता के कारण मन्द पड़ गया है।
अलकार
_ 'रयणावली' के पद्यो की पालकारिक योजना भी उच्चकोटि की है। लगभग सभी प्रसिद्ध अलङ्कारो उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास, अर्थान्तरन्यास, अन्योक्ति आदि का प्रयोग इसके पद्यो मे परलक्षित किया जा सकता है। इन