Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 226
________________ 214 ] लिए अलिजिह्वा (कोया) को उठाना पड़ता है। इस स्थिति मे आकर स्वर उच्चारण के ममाप्न होते-होने अनुनामिक होने लगता है अत अनुम्वार के साथ स्वर का अनुनासिकीकरण सम्बद्ध है। स्वरानुवर्ता अनुम्बार स्वर को प्रभावित करता है। इसका निपेध नही किया जा सकता । प्राकृत और अपभ्र श में अनुस्वार के पूर्ववर्ती स्वर वहुवा अनुनासिक होते देखे गये है। ' सरलीकरण की पद्धति में आगे चलकर प्राकृत तथा अपभ्रश मे परसवर्णविधान न होकर सवत्र नुस्वार का ही प्रयोग किया जाने लगा। देशीनाममाला के शब्दो मे भी इसी पद्धति मे सर्वत्र अनुस्वार विवान मिलता है। यह कोश केवल सजा तथा विशेपण पदो का ही सकलन है। इसमे स्वरानुनामिकीकरण की प्रवृत्ति केवल दो ही रूपो मे प्राप्त ह ती है(1) पदों के अन्त मे प्राय नपु सक लिङ्ग के द्योतन के लिए-'अ' का प्रयोग जैसे कदोह नीलोत्पलम् (दे 2119), कउल-करीषम् (दे. 217)। (2) विशेषण पदो मे 'क्त' प्रत्यय के द्योतक 'अ' के रूप मे ~जैसे कड - तरिन-दारितम् (दे 2-20) किलिम्मिन-कथितम् (दे. 2-32) (3) वर्गीय अनुनासिक व्यजनो के स्यानी रूप में ~ जैसे ककोड (दे 2-7), कची (दे 2-1), गो (३.2199) गवलया (दे. 2-85), गु फो (दे. 2-90) विसर्ग का प्रयोग देशीनाममाला के किसी भी शब्द मे विसर्ग का प्रयोग नहीं है। इसमे सकलित प्राकारान्त पुल्लिग शब्दो मे अन्त्य विमर्जनीय का सर्वत्र 'नो' हो गया है । सस्कृतवाल मे ही कुछ म्थितियो में विमर्जनीय को 'यो' करने की प्रवृत्ति चली श्रा दे ना मा के गन्दो की अनुम्बार प्रयोग की प्रवत्ति के ठीक विपरीत इन शब्दो के उदाहरण म्दाप रची गयी गावामी में गरमवणं की प्रवृति प्राय है कममे कम 'न्' और 'म' को तो मवंत्र पर वर्ण कर में निवा गा है। जैने धम्मिय (दे 6-9-16), मन्ति (6-12-19)। परन हम नियम का सवन्न वढाई मे पालन नहीं किया गया है। हम तो मवंत्र अनुयार प में ही निदे गये है न और म् का बनस्वार यौर पर सवणं दोनो ही प प्राप्त होता है प का मवंत्र पर मवणं काला न्प भी है। यह हेमचना को मान्यता के मदंया बनकली है उन्होंने मि है 811125 में -ज-ण नो व्यज्जन मूत्र में से मोर ज सो गवन बनम्बार मझा तया अन्य को विकल्प में स्वीकार किया है। हेमचन्द्र , इम मृत्र को ध्यान में रखते हुए भी दे ना मा. परसवर्ण कर के अननारियनों (वियतन, म) को लिखने की प्रवृत्ति लिपिकारो को मल भी कही जा सकती है 'परमपरिट' टया दोहा कोश' के लिपिकारों में भी ऐसी हो नान्ति देखने में जाती है।

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