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'देशी' शब्दों का विवेचन
'देशी' शब्द का सामान्य अर्थ ग्रास्य या 'प्रान्तीय' है। भाषा के अर्थ मे इसका प्रयोग प्राकृत व्याकरणकारो ने किया है। सस्कृत व्याकरणकारो ने किसी भाषा विशेष के अर्थ मे इसका प्रयोग न कर 'प्रान्त' के अर्थ मे किया था। पाणिनि की प्रष्टाध्यायी' मे यद्यपि कई स्थान पर 'देश' शब्द है परन्तु वहा यह प्रान्तवाचक ही है । पाणिनि के पहले भी निरुक्तकार यास्क ने2 'देश' शब्द का प्रयोग प्रान्त के ही अर्थ मे किया था । महाभारत मे सर्वप्रथम 'देश' शब्द का प्रयोग 'भाषा' के साथ किया गया प्राप्त होता है। इसके बाद भरत ने 'देश' शब्द का प्रयोग अपने नाट्यशास्त्र मे विभिन्न प्रान्तो मे वोली जाने वाली बोलियो के अर्थ मे किया
प्रत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि देशभाषाविकल्पनम् ।
अथवा अछन्त. कार्या देशभाषा प्रयोक्तृभि । नानादेशसमुत्थं हि काव्य भवति नाटके ॥ 17146
वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र (114150) विष्णुधर्मोत्तर तथा मृच्छकटिक (अ क 6, पृष्ठ 225) विशाखदत्त ने मुद्रारक्षस, वाणभट्ट ने कादम्बरी तथा धनजय ने अपने दशरूपक मे नाना देशो मे बोली जाने वाली भाषामो को देशभाषा कहा है--
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एडप्राचा देशे 111175 तदस्मिन्नस्तीति देश तन्नाम्नि 412167 निरुक्त, अध्याय 2, पाद 1, दुर्गाचार्य एव मोहरचन्द पुष्करिणी टीका
चर्ममृगश्च्छिन्ना, नाना भाषाश्च भारत । कुशला देशभाषास्तु, जल्पतोऽन्योन्य ईश्वर.-महाभारत-शल्यपर्व, मध्याय 46