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(164) हड्डं-अम्बि : (मना) दे. ना. मा. 8-59 ~ हिन्दी 'हड्डी' या 'हाई' के रूप में इस शक का विकास टेवा जा सकता है।
(165) हन्त्रिाली-दूर्वा (मना) दे ना मा. 8-64 -हिन्दी 'हरियाली' के रूप में स्वल्प वनिपरिवर्तन (य) के माय इस शब्द को बिक्रमित देखा जा सकता है । सस्कृत हरियाली' में भी इसकी व्युत्पन्न किया जा सकता है।
(166) हलबोली-~वाचाल . (विशेषण) दे ना, मा 8-64 अबधी मे 'हलदुलहा' मन्द जल्दी जल्दी बोलने वाले तथा शीत्र कार्य करने वाले दोनो ही के लिए प्रयुक्त होता है । यह उपयुक्त शब्द का ही विकसित रूप कहा जा सकता है।
(167) हिदही-आकुल : (विशेष) दे ना. मा. 8-67 -अवधी (हिट्ठी) तथा हिन्दी 'ही' के रूप में इस शब्द को विकसित देखा जा सकता है । सस्कृत 'हट' शब्द से व्युत्पन्न करने पर यह शब्द तद्भव होगा।
(168) हुलिय-शीत्रम (विशेषण) दे. ना. मा 8-59 ~ 'अवधी में हलना' क्रिया नेज चलने या कोई मार्ग शीत्र करने के लिए या मारने के अर्थ में व्यबहत होता है । उपर्युक शब्द में ही इमका सन्तन्य होना चाहिए । निर्ण
पर देशीनाममाला के कुछ शब्दो का हिन्दी तथा उसकी बोलियों में विकास प्रणित किया गया। इस दोष गन्य के और भी अनेको मन्द अन्य प्रावनिक भानीय प्रारं मापानी और उनकी बोलियों में विकसित दिग्वाये जा सकते है। यदि इन विपत्र के अधिकारी विद्वान इस ओर व्यान दें तो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तव्य नामने प्रा भन्ने है । हिन्दी में भी कही अधिक मराठी, गुजराती तथा दक्षिणी भापायो बन्लड ग्रादि की शब्द सम्पत्ति का व्युत्पत्तिपरक अध्ययन इस कोण के गटोक महार मालतापूर्वक निया ला सकता है। देशीनाममाला की देश मब्दावली का अधिकाश भाग आज की ग्रामीण बोलियो मे विकसित होकर प्रचलित है, भूल सदमे कही मुम्न में सम्बद्ध बता दिया जाता है तो कही अन्य प्रागन्तुक विदेशी मापायो । वास्तव में भारत में जितनी भी प्रचलित मायाए हैं ममी में परम्परा मे चो प्रये जब्दों की भरमार है । इन जब्दो की स्थिति का पता मध्यकालीन भारतीय प्रारंभापानों की शब्दावली के अवगाहन में ही लग सकता है, क्योकि कम गेम भारतीय भाषाओं के बीच मध्यकालीन आर्य भाषाएं ही ऐमी भापाए हैं जो गर-जीवन के प्रधिक निकट रही है टमीलिए इनको शब्द सम्पत्ति भी पारम्परिक प्रयोगो में गेह है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने टम अथाह सम्पत्ति के अवगाहन का सफल प्रयास