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रूप मे हिन्दी तथा उसकी लगभग सभी बोलियो मे प्रचलित है । यद्यपि इसका अर्थ दुष्ट, धोखेबाज आदि हो गया है, फिर भी इस शब्द के अन्तराल में निहित कायरता का प्राभास इसे 'उच्छ्य' के अर्थ से वहत दूर नहीं ले जाता । ध्वन्यात्मक विकास भी सही दिशा मे है । उच्छुअ7 प्रोच्छह (उद्ग्रोति) पीछा।
(17) उच्छवियं - शयनीयम् (सज्ञापद दे ना. मा 1-103 -- विस्तर का अर्थ देने वाला यह शब्द अवधी मे बिछौना, ब्रजभाषा मे बिछौन तथा विछौना एव हिन्दी की अन्य वोलियो मे भी इन्ही रूपो मे विकसित देखा जा सकता है ।
(18) उज्जडं - उद्वसम् (विशेपण पद) दे ना मा. 1-96 हिन्दी मे 'उजाड' 'ऊजड' अवधी मे ऊजर, व्रजभापा मे 'उजार' आदि रूपो मे इस शब्द का विकास देखा जा सकता है । हेमचन्द्र ने इसका प्रयोग 'सुनसान स्थान' के अर्थ मे किया है। हिन्दी तथा उसकी बोलियो मे भी इसका यह अर्थ सुरक्षित है। भापा वैज्ञानिक दृष्टि से ड्का र या ड में परिवर्तन हिन्दी तथा उसकी बोलियो मे वहुतायत से देखा जाता है।
(19) उज्झमणं -पलायनम् - (सज्ञा पद) दे ना. मा. 1-103 - हिन्दी तथा उसकी बोलियो मे व्यवहृत होने वाला त्वरावाचक 'झम' शब्द इसी शब्द से विकसित होगा । जैसे 'झम से उठा लिया', 'झम से भागा' 'झमकि झरोके झाकि' आदि ।
(20) उडिदो - मापघान्यम् -- (सज्ञापद) दे ना मा. 1-98 - यह शब्द खडी बोली तथा ब्रजभाषा से 'उडद', अवधी और भोजपुरी से 'उरिद' बुन्देली मे 'उरदन' गुजराती मे 'अडद' तथा राजस्थानी मे 'उडिद' या 'उडद' के रूप मे विकसित है । यह अपनी प्रारम्भिक अवस्था से दो दाल वाले बीज विशेष का वाचक रहा है और आज भी उसी अर्थ मे प्रचलित है।
(21) उडडसो - मत्कुण (सज्ञापद) दे ना मा 1-96 - भोजपरी मे 'उडिस' या 'उडीस', वगला और मैथिली मे 'उडीस' के रूप में विकसित यह शब्द आज भी 'खटमल' का वाचक है।
(22) उत्थल्लपत्थल्ला (सज्ञापद) - (श्रोत्थल्लपत्थल्ला)1 पार्श्वद्वयेन परिवर्तनम् दे ना मा. 11122 हिन्दी मे 'उथल-पुथल' शब्द इसी का विकसित रूप है । गुजराती मे यह शब्द 'उथल-पाथल' के रूप में प्रचलित है ।
'उतओति' से। हेमचन्द्र द्वारा दिया गया 'उत्थल्लपत्यला' शब्द एक स्थूल क्रिया' इधर-उघर बार-बार उलटना' का द्योतक है। हिन्दी मे यह 'उथल पुथल' के रूप में 'हलचल' वाची होकर सूक्ष्म अर्थ देने लगा है। शब्दो के इम अर्थविकास के अन्तराल मे एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्य निहित है। पहले अशिक्षित वर्ग में प्रचलित 'देशी' शब्द स्थूल क्रियाओ का ही अर्थ देते रहे होगे परन्तु सभ्यता और शिक्षा के विकास के साथ ही उन्ही शब्दो मे अर्थ गौरव आया। अभिधा के बाद लक्षणा फिर व्यजना और ध्वनि जैसी शब्द शक्तिया सभ्य सुशिक्षित मनुष्य का विकास लगती हैं। मादि युग का मानव और उसकी भाषा दोनो ही कमिधावादी रहे होगे।