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देशभाषा क्रियावेश लक्षणाः स्यु प्रवृत्तयः । लोकावेदागम्येता यथोचित्य प्रयोजयेत् । यद्देशनीच पात्र यद् तद्देश तस्य भापितम् ॥ दशरूपक 2158161
धनजय स्पष्ट ही 'देशीभाषा' का प्रयोग निम्न श्रेणी के पात्रो की भाषा के लिये करते हैं।
उपर्युक्त कुछ उल्लेखो से यह विदित होता है कि भिन्न भिन्न प्रान्तो व स्थानो मे वोली जाने वाली भाषा देशभाषा कहलाती है तो क्या यह 'देशभापा' ही देशी है ? इसका निश्चय करने के लिये प्राकृत वैय्याकरणो द्वारा किये गये उल्लेखो का विवरण आवश्यक है।
प्राकृत व्याकरणकारो ने प्राकृत भाषा मे तीन प्रकार के शब्द बताये है। (1) तत्सम (2) तद्भव (3) देशज । (१) तत्सम.
ऐसे शब्द जो सीवे संस्कृत से विना किसी रूपपरिवर्तन के प्राकृत ग्रन्थो मे आ गये हैं, तत्सम कहलाते हैं । इन्हें मस्कृतसम (चण्ड 111 डे ग्रामिटिकिल प्राकृतिस पेज 80) तत्तुल्य (वाग्भट्टालकार 212) तथा समान (नाट्यशास्त्र 1712) आदि सज्ञाए भी दी गयी है। (2) तद्भव ·
ऐसे शब्द जो रूप और ध्वनि परिवर्तन के कारण विकृत हो जाते है परन्तु यह विकार व्याकरण की प्रक्रिया के आधार पर होता है । उन्हे 'तद्भव' कहा गया है । इसके भी विभिन्न नाम हैं जैसे-हेमचन्द्र (111) तथा चण्ड इसे 'सस्कृतयोनि कहते हैं । वारपट्ट ने ऐसे शब्दो को 'तज्ज' कहा है। भरत ने (नाट्यशास्त्र 1713) इसे विभ्रप्ट सज्ञा दी है। (3) देशी:
ऐसे शब्द जो बहुत अनादिकाल से वोलचाल मे व्यवहृत होते आये है और जिनकी व्युत्पत्ति व्याकरण लभ्य नही है-'देशी' शब्द कहलाते हैं । हेमचन्द्र त्रिविक्रम सिंहराज मार्कण्डेय तथा वाग्भट्ट ने ऐसे शब्दो को देश्य या देशी नाम दिया है । चण्ड (प्राकृत लक्षण) ने इसे देसी प्रसिद्ध तथा भरत ने 'देशीमत 2 नाम दिया है।
1. देशीनाममाला, पृ0 1, 2 दण्डिन और पनिक । 2 नाट्यशास्त्र 1713