________________
156 ]
उपयुक्त होगा।
." ..." वैदिक और लौकिक संस्कृत भापा पजाव और मध्यदेश मे प्रचलित वैदिक काल की प्राकृत भाषा में उत्पन्न हुई है। पजाब और मध्यदेश के वाहर के अन्य प्रदेशो में उस समय आर्य लोगो की जो प्रादेशिक मापाए प्रचलित थीं उन्हीं में ये 'देशी' शब्द गृहीत हुए है। यही कारण है कि वैदिक और सस्कृत माहित्य मे देशी शब्दों के अनुरूप कोई शब्द (प्रतिशब्द) नहीं पाया जाता है ।
प्राचीनकाल मे भिन्न-भिन्न प्राकृत भाषाए प्रख्या थी, इस बात का प्रमाण व्याम के महामान्त, भरत के नाट्य शास्त्र और वात्स्यायन के कामसूत्र प्रादि प्राचीन मन्कृत ग्रन्यो मे और जनो के ज्ञातावमकथा विपाकश्रुत-ौपपातिकमूत्र, तथा राजप्रश्नीय आदि प्राचीन प्राकृत ग्रन्यो मे मिलता है। इन ग्रन्यो मे "नाना भाषा, 'देशमापा' या 'देशी भाषा' शब्द का प्रयोग प्रादेशिक प्राकृत के ही अर्थ मे किया गया है । चड ने अपने प्राकृत व्याकरण में जहां देशी प्रसिद्ध प्राकृत का उन्लेन्च किया है वहा भी देशी शब्द का अर्थ 'देशीमापा ही है । ये सब देगी या प्रादेशिक भाषाएं भिन्न-भिन्न प्रदेशो के निवानी आर्य लोगो की कथ्य भापाए थीं। इन मापानी का पजाव और मध्यदेश की कथ्य भाषा के साथ अनेको अशो म जैसे माइश था वैमे विनी अग में भेद भी था। जिम-जिम अश मे इन भापायो का पजाब और मध्यदेश की प्राकृत भाषा के साथ मतभेद था उनमे से जिन भिन्नभिन्न नामो ने और वातुनो ने प्राकृत माहित्य में स्थान पाया है वे ही हैं प्राकृत के देशी रा देश्य शब्द ।
'नानावमिरान्छना नानामापाच मान कतारेगमायासु जन्यन्नोऽन्योन्चमीटर ·
- महामारत म प,46, 103 11 अनचं प्रवश्यामि देशमापा विपल्लनम्।' । अपवादन कार्या देवमाय प्रयोस्तमि ।'ना जा 17/24146 नाचत मम्मननेव नात्यत देगमापया । कला गोष्ठीय क्ययत्नाके बहुमती भवत् ।
कामन 114150) 'नगमे मंटे मारे बटारमविहिष्यगार देमीमाषा विमागए दीया।' 'तत्य ण उपाए नयनए देवदत्तानाम गणिया परिदमा बट्टा-गटठारम देमीमापा विजारमा।'
____॥ ज्ञानाधमक्यामूत्र-पत्र 38, 921 तुत्य न वाणिय गामे पायजयाणाय गणिया होत्या.....यटठारस दीमापा विमाग्या।'
-11 विपाक्य त पत्र 21-22 ॥ 'ताप दढपाने दागा अहवाग्मटेमीभाम विमाग्य ।' .-प्रोपपातिक मूत्र पेग 109 ।। 'ar 3 दटपही दारण वादाविदामपना भाषा दिमागा।'
गजनीय-पत्र, 1485 2 मिट प्रसिद्ध प्राइन बेधा विकाः भवति-सम्झनुयानि 'सम्वृतमम देणीप्रसिद्ध तच्चे
दपिद मिय (प्राकृत नक्ष)