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पर गिनाये गये ये कुछ प्रास्यात पद सस्कृत मे न के बराबर प्रयुक्त होते हैं । भागे लोक भापायो के सहारे विकसित होने वाली प्राकृत तथा उसकी अन्य सहचारिणी भापायो में ये घातुए प्रयुक्त होती रही और कालक्रम से आधुनिक भार्य भाषा मे अपने उसी अर्थ में प्रचलित हैं । महपि पाणिनि की अष्टाध्यायी में प्रयुक्त होने मात्र से ये शब्द सस्कृत-योनि नही होगे, फिर पाणिनि तो स्वय ही 'लौकिक एव वैदिक भाषा' का व्याकरण रचने की प्रतिज्ञा करते हैं। बाद में यदि 'लौकिक' का अर्थ 'साहित्यिक संस्कृत भापा' हो गया तो इसमे पाणिनि का दोष नहीं । अाधुनिक भापा वैज्ञानिको मे यह मान्यता जड पकडती जा रही है कि सस्कृत ऐसी भापा है जिमको सस्कार (सुवार) कर उसे खूब ठोका-पीटा गया है । इस कार्य मे पाणिनि ने सबसे अधिक योग दिया । इमी प्रक्रिया के बीच कितने ही लोक भाषायो के शब्दो पर सस्कृत की मुहर लगायी गयी।
इमी तथ्य को दूसरे रूप में भी देखा जा सकता है। महर्षि पाणिनि के पहले तथा वाद की भाषा मे कुछ विलक्षणताएं स्पष्ट ही परिलक्षित की जा सकती हैं। सस्कृत भाषा की लम्बी परम्परा मे कुछ शब्द ऐसे पाते है जो व्यवहृत तो एक ही अर्थ में हुए है, परन्तु उनकी स्थिति स्पस्ट रूप से अन्नग-अलग है। संस्कृत मे 'घोडे' के लिए घोटक और 'अश्व' दो शब्द मिलते है । तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि 'वोटक' शब्द आर्येतर भापायो से सम्बद्ध है - तमिल में 'कुदिर', कन्नड्ड में 'कुदरे' तथा 'कोटा' में भी 'कुदरे' मिलता है। इन मापात्रों में प्राप्त होने के कारण यह स्पष्ट ही आर्येतर मापा (द्रविड भापा) से लिया गया है। दोनो शब्द "पोटक' और 'अश्व' माथ-माय व्यवहृत होते रहे। स्थिति के अनुसार प्रथम लोकमापा ने पाना हा शब्द रहा होगा और द्वितीय शिक्षितो की भापा का शब्द रहा होगा। शिक्षितो का 'अध्व' गब्द अाज हिन्दी मे भी उसी वर्ग के लोगो का शब्द है - जब कि 'घोटक' 7 घोडग्र7 घोडा आदि त्यो मे परिवर्तित होता हया मामान्यजनो द्वारा व्यवहृत होता है। इसी प्रकार कुत्ते के लिए 'कुक्कुर' और 'वान' दो शब्द है । विल्ली के लिए 'विलाई' और 'मार्जारी' दो शब्द व्यवहृत होते न्हे है । यदि इन साथ-साथ चलने वाले शब्दो का विकासक्रम लक्षित किया जाये तो देखने में पायेगा कि वैदिक युग में चलने वाले प्राकृत जनो द्वारा व्यवहृत अनेको पद वह घोडे बनि परिवर्तन या स्प परिवर्तन के साथ आज भी चल रहे हैं। प्राचार्य हेमचन्द्र की 'देशीनाममाला' में ऐसे अनेको पद है जिनका आधुनिक आर्यभापायो विशेषतः मानक हिन्दी में विकास, एक अनोखी भापा-शास्त्रीय कहानी उपस्थित करता है । मानक हिन्दी का शब्द भण्डार विविध मापात्रो के मेल से बना