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[ 167 'देशी' शब्दो के उद्भव के मूल मे यही सास्कृतिक आदान-प्रदान की प्रक्रिया देखी जा सकती है । 'देशीनाममाला' मे अनेको शब्द 'अनुकार शब्द' (onomatopoerc) हैं । द्राविड तथा निपाद दोनो भापामो के अनुकार शब्द उनके एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है । इसी प्रकार प्रतिध्वनि वाले शब्द भी बहुत कुछ आर्येतर ही कहे जा सकते है। ये सभी तत्त्व ग्रामीण पार्यों और प्रार्येतर जातियो के सम्पर्क के दृढतर होने के साथ ही दोनो की वोलियो मे स्थान पाते गये । जिस वातावरण और जिस अवस्था के लोगो मे इन शब्दो का उदभव हना था उसी वातावरण और उन्ही अवस्थानो मे रहने वाले लोगो के बीच इनका विकास भी आधुनिक आर्य भापायो मे देखा जा सकता है।
ऊपर बताये गये तथ्य ये सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि 'देशी' शब्द प्रचुर मात्रा मे आर्येतर सस्कृति से सम्बन्धित होते हुए भी स्वरूप की दृष्टि से पार्यो की भिन्न भिन्न प्रान्तीय वोलियो के शब्द हैं । ये बोलिया आर्य और प्रार्येतर दोनो ही वर्ग के लोगो में प्रचलित रही होगी। इन्ही बोलियो को 'प्राथमिक प्राकृत' कहा गया है । इसी की एक बोली वैदिक 'छान्दस्' भाषा के रूप में विकसित हुई थी । वैदिक साहित्य मे इन्ही भिन्न-भिन्न बोलियो के बोलने वाले लोगो को व्रात्य, असुर, दस्यु आदि कहा गया है । जब वैदिक भापा मध्यदेश की साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गयी और वह सामान्य बोलियो से दूर हटती गयी, फिर इन वोलियो ने सिर उठाना प्रारम्भ किया और साहित्यिक भापा से अलग हटकर ग्रामीण तत्त्वो से युक्त पालि का विकास हुआ। इसी परम्परा मे मध्यकालीन प्राकृतो और नव्य भारतीय आर्य भाषाओ का भी विकास हुा । ये सारी भाषाए सस्कृत के प्रभाव से इतनी ग्रस्त रही कि आगे चलकर इन्हे संस्कृत से ही उद्भूत मान लिया गया। लेकिन यह अवस्था केवल साहित्यिक प्राकृतो की थी। प्रत्येक साहित्यिक भापा के युग मे सामान्य बोलचाल की स्थानीय भाषाए अपने मूल स्रोत प्राथमिक प्राकृत से जुडी रही । आधुनिक आर्य-भाषामो के सदर्भ मे भी यही बात देखी जा सकती है । इन साहित्यिक भाषाप्रो की बोलिया आज भी अपने आप मे अनादि काल से चले आ रहे प्राकृत के शब्दो को सजोये हुए है । सुनीतिकुमार चाटुा के शब्दो मे
"नव्य भारतीय आर्य भापायो तथा बोलियो मे ऐसे कई सी शब्द है जिनकी व्युत्पत्ति भारतीय आर्य उद्गमो से नही मिलती" हा उनसे प्राकृत पूर्व रूपो का अवश्य सरलतया पुनर्निर्माण किया जा सकता है।"
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चाटा, भारतीय आर्य भाषा और हिन्दी', ' 111