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[ 113 और दाहिने गन्ने के नीचे धारण करते थे । यह ग्रामपण सभवत अवसर विशेप पर ही धारण लिया जाता रहा होगा। मामान्य दिनो मे ब्राह्मण पुरुष वर्ग कच्चे सुत का बना हमा जनेऊ धारण कर रहा होगा। इस तथ्य का समर्थन तग्ग 5-1 शब्द होता है। कटि पर धारा किये जाने वाले प्राभूषणो मे मणिग्इया 6-126, नपा 8.2, दो शब्द उल्लेखनीय है। इनमे प्रथम विविध मरिण माणिक्यो से सनित मेगना होती होगी जिसे उच्च वर्ग की स्त्रिया या वेश्याए तथा राजनक्रिया घारगा करती रही होगी । सपा साधारण चादी या अन्य धातुप्रो की बनी मेहता कही जा सकती है। सम्भवत इसका प्रयोग साधारण रहन-सहन के लोग कन्ते रहे होगे । हेमनन्द्र द्वारा दिये गये उदाहरण से इसी प्रकार का प्राशय ध्वनित होता है।
हायों को अंगुलियो में धारण किये जाने वाले प्राभूपणो मे अगूठी के लिए कई शब्द प्राये हैं जमे अगुत्यल 1-31, तणय मुद्धिप्रा 4-9 आदि । स्त्रिया कलाइयो मे चूडिया धारण करती थी। इसका सकेत चूडो 3-18 मे मिल जाता है । पावो मे पहने जाने वाले घुघुरुयो के लिए सद्दाल 8-10 तथा सिखल 8-10 दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं ।
प्रामपणो से सम्बन्धित "देशीनाममाला" की उपर्युक्त विस्तृत शब्दावली किसी युग पोर वर्ग विशेष की सस्कृति की ओर सफेत नही करती। इन शब्दो की स्थिति को देखते हुए इन्हे किसी युग या वर्ग विशेष की सस्कृति का परिचायक मानना ठीक नहीं। इनना अवश्य है कि इन्ही शब्दो को आधार बनाकर यदि तुलनात्मक विवेचन के आधार पर अन्य सास्कृतिक शब्दो के साथ मिलाकार देखा जाये तो एक अत्यन्त रुचिकर परिणाम समक्ष आ सकता है। परन्तु प्रमाण के अभाव मे इस क्षेत्र मे कुछ कहना कम से कम इन पक्तियो के लेखक के लिए तो एक असभव कार्य है । यही कारण है कि इन शब्दो का वर्णनात्मक विवेचन मात्र प्रस्तुत करके सतोप कर लिया गया है। सान-पान तथा घरेलू वस्तुएं -
किसी भी समाज के रहन-सहन का स्तर एव उसकी सास्कृतिक ऊ चाई बहुत कुछ उस समाज मे रहने वाले व्यक्तियो के खान पान और घरेलू जीवन मे दैनिक प्रयोग की वस्तुग्रो से ज्ञात हो जाती हैं । यह पहले ही कहा जा चुका है कि "दैशीनाममाला" मे निहित तद्भव तथा देशज शब्दो का वातावरण ग्रामीण है। यहा दैनिक जीवन के प्रयोग योग्य वस्तुप्रो की दी गयी सूची मे से कितने ऐसे शब्द है जो आज भी स्वल्प ध्वनि परिवर्तन के साथ ग्रामीण जीवन मे जैसे के तैसे