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62 ] अन्य किसी कोश ग्रन्य का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। हेमचन्द्र ने इनका उल्लेख 1-141, 3-22, 4-30, 6-101, 8-17 में किया है ।परन्तु हेमचन्द्र ने धनपाल के नाम से जितने भी उद्धरण दिये हैं वे "पाइग्रलच्छीनाममाला" मे नही मिलते । इसके अतिरिक्त "पाइअलच्छीनाममाला" मे मकलित शब्दो की चर्चा करते हुए भी वे इस सदर्भ मे धनपाल का नाम नही लेते । वहा "इत्यन्ये" कहकर आगे बढ जाते हैं । अब यहा दो ही सम्भावनाए हो सकती है । एक तो यह कि धनपाल ने "पाडग्रलच्छीनाममाला" के अतिरिक्त कोई दूसरा भी कोश लिखा था और उसी से हेमचन्द्र ने ये उद्धरण लिये । दूसरे धनपाल नाम का कोई दूमरा कोशकार रहा हो जिसने महत्त्वपूर्ण देशीकोश की रचना की हो । प्रार० पिशेल' की यह मान्यता है कि "देशीनाममाला" मे उल्लिखित "घनपाल" पाइग्रलच्छी नाममाला" के रचयिता धनपाल मे अलग विद्वान रहा होगा। इस बात के समर्थन में वे दो तर्क देते हैं - एक तो यह कि “पाइअलच्छीनाममाला" जिसे कि धनपाल ने स्वय ही देशीकोण कहा है, रचने के बाद, उन्हें उसी प्रकार का दूसरा देशीकोश लिखने की अावश्यकता क्यों पडी । एक ही विद्वान् द्वारा एक ही समय मे एक ही विषय पर दो अन्य परम्परा मे देखने को नहीं मिलते । दूसरी बात यदि देशी कोश से उद्धरण देते समय हेमचन्द्र ने धनपाल का नाम लिया तो "पाइप्रलच्छी नाममाला" के उद्धरणो मे उन्होंने धनपाल का नाम ग्रहण न करके "इत्यन्ये" या "इतिकेचित्" क्यो लिखा ? क्या इससे ध्वनित नहीं होता कि हेमचन्द्र की दृष्टि मे धनपाल का कोई मूल्य नहीं था। इन तकों के आधार पर उन्होने यह सिद्ध करने का प्रयाम किया कि हेमचन्द्र द्वारा उल्लिखित धनपाल कोई अन्य विद्वान् रहे होंगे जिन्होंने एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण देशीकोश की रचना की थी। 7. पाठोटूखल :
इनका उल्लेख आचार्य ने केवल एक बार (8-12) मे किया है। ये सभवतः
"] vedture to suggest that Dhanpal quoted by Hemchandra is quite different from the author of Paiya lacbhidammala If They are identical it would be impossible to conceive how one person could teach one and the same word in two different works and that too in different forms, as it would be necessary to suppose from VI 101 Again I do not see any reason why he should compose two Kosas of the same kind instead of one comprehensive one The Paiyalacbhi is a very meagre production and the number of Desi words taught in it is very small The Kosa of the other Dhanpal must have been a work of considerable merit to deserve to be quoted by Hemchandra by the name of author."
Desi Nammala-Introduction I P-13