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70 ] परिपाटी पर अपने ये उदाहरण लिये हो। इस दृष्टि से यदि "देशीनाममाला" मे उदाहरण के रूप मे आयी हुई गाथाग्रो का अध्ययन किया जाये तो उसका "ग्यणावली" नाम भी सर्वथा सार्यक मिट्ट हो जाता है। इस दिशा मे विचार करने के लिए यह उपयुक्त स्थान नहीं है। इसका साहित्यिक मूल्याकन प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के एक अलग प्रध्याय मे किया जायेगा । गायापो का वर्गीकरण
"देशीनाममाला" की उदाहरण की गाथायो को तीन प्रमुख वगों में विभाजित किया जा सकता है। एक तो लौकिक प्रेम और 7 गार मे सम्बन्धित गाथाए । इनमे प्रेम का विविधात्मक स्वरूप तथा तरह तरह के नायक-नायिकायो का विवरण दिया गया है । दूसरे कुमारपाल की प्रशस्ति से सम्बन्धित गायाए-इनमे कुमारपाल
का परात्रम, उसकी दानशीलता, युद्ध मे दिखायी गयी वीरता तथा शौय ग्रादि का वर्णन किया गया है। तीसरा कोटि मे आने वाली गाथाए विविध लोकाचागे सामाजिक देवी देवताओं, भिन्न-भिन्न प्रादेशिक रीति-रिवाजो तथा सामाजिक अधविश्वामों आदि का विवेचन प्रस्तुत करती है। सास्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से इन गाथाओं का बहुत वडा महत्व है। इन तीन विषयो के अतिरिक्त कुछ ऐसी भी गाथाए हैं जिनकी रचना मात्र शब्दो को कण्ठम्य करने की सुविधा के लिए की गयी है। इनमें किसी विशेष अर्थ का समावेश न होकर नामो की गणना मात्र करा दी गयी है । इन गाथायो को भी तीमरी ही कोटि के अन्तर्गत रखा जा सकता है। प्रो० मुरलीवर वनर्जी ने "देशीनाममाला" की भूमिका के दूसरे भाग मे इनका वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। उन्होने प्रत्येक वर्ग की गाथायो को वर्गीकृत करने के साथ ही इनकी सख्याए भी दे दी हैं। वह वर्गीकरण इस प्रकार है ।
उदाहरण की गाथाएं वर्ग लौकिक शृगार से
कुमारपाल की अन्य कुल सस्या सबवित
प्रशस्ति प्रथम वर्ग 762
383 194
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1, तृतीय कोटि की गाथायो में नीति और उपदेश ही मवंतप्रधान है। दुजन निदा, सज्जन
प्रशमा मदाचार का गुणगान आदि विषयो को देखते हुए प्रो. मुरलीधर बनर्जी इनकी तुलना
"भूत हरि" के नीतिशतक के पन्नोको से करते हैं। 2 5-7, 10-15, 17-20, 23-26, 28, 32,34 36-39,42, 46-49,51, 52, 55,
56, 58 60, 63 67-73, 75 76,79 81,86, 87, 89, 91,92, 94,96, 98,99, 101-104, 108-110, 112-115, 120, 123-126 131-1331 9, 22, 24, 25,29,31, 40, 41, 43, 45, 50, 53, 54, 57, 62, 65, 66, 74, 78, 80, 83.85, 88, 90, 95, 97, 100, 105, 107, 116 119 127
1301 4. 1, 4, 16, 21, 27, 30, 35, 61, 64, 77, 82, 93, 106, 111, 121, 1221