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. [ 83 वे अत्यन्त उभरी हुई रेनायो पौर चटकीले रगो से युक्त हैं । कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं -
एक नग मुन्दरी ललना का वर्णन करते हुए हेमचन्द्र कहते हैंघणिप्रथमल बनकलस धुत्तग्गिप्रम्ब धरन्गसिग्र हसिन ।
घरिणय लहित जुगारगो मइ घण्णाउमत्तण सहल ।। 5146158 'प्रत्यन्त पुष्ट और विम्तीर्ण कलश के ममान स्तनो, अतिविस्तृत नितम्ब, कपास के ममान स्वच्छ हगी वाली प्रिया को दे चकर युवक स्वय को आशीर्वाद युक्त एवं सफल मानते हैं।'
उच्चनाभिनन वाली गौरागी नायिका मनुष्य रूपी मृगो को प्राकर्पित करने के लिए गोधूम की कृषि के समान है -
कुन्त न उड्डयोण जाणवणमिगारण उबवाय व । मयणेग उरे रइय तुह उच्च उ बि गोरगि ।।1168186
'केशराशि तृणो का घोखा है । नयन मनुष्य रूपी मृगो के बन्धन के लिए जाल हैं। प्रारम्भ मे ही कामदेव द्वारा रचित है उच्चनाभितल वाली गौरागि । तुम पके हए गोघूम की (फसल की) भाति हो। स्त्री-सौन्दर्य का कितना पालकारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। गौरागी नायिका को कामदेव की कृषि वताना अपने ग्राप मे अत्यन्त मौलिक एवं दुर्लभ कल्पना है । एक अन्य स्थान पर हेमचन्द्र सुन्दरी रमणी को कामदेव की जीवक मृगी बताते हैं । जिस प्रकार बहेलिया मृगो को आकृष्ट करने के लिए जगल मे अपनी पालतू मृगी को बाघ देता है और जब मृग उससे प्राकृप्ट होकर उसके पास आता है तव बहेलिया उसका शिकार कर लेता है । उमी प्रकार सुन्दरी रमणी भी कामदेव रूपी व्याध की जीवक मृगी है, जिसे उसने युवक रूपी मृगो को आकृष्ट करने के लिए छोड रखा है
जाल पडिपाइ जात ण णिअसि जीवयमइ व मयणस्स । ता मम हरिणोन्ब तुम कुलडाजिण्णोव्भवाउ जिग्यन्तो ।।
'कामदेव की जीवकमृगी के समान चन्द्रशाला मे स्थित उसे (नायिका को) नही देख रह हो तो जानो तुम हरिण के समान कुलटा रूपी दूर्वानो को सू धते हुए घूमो ।' 'रयणावली' के समस्त नख-शिख वर्णनो मे नितम्ब, कटि, नाभि, स्तन, मुख, नयन और केशो का ही वर्णन प्रमुख है। कमल के समान आखो वाली सिंह कटि एक रमणी रात मे पति के सो जाने पर अभिसार के लिए जा रही है।।
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दे० ना0 मा0 8-1-1