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'हे तरुण निश्चय ही स्वप्न मे तुम्हे देखते हुए वह कामवाणो से पाहत होती रहती है (परन्तु) मोकर उठने पर भग्न मनोरथा हो जाती है ।'
___ इन कुछ प्रमुख एव उल्लेखनीय पद्यो के अतिरिक्त और भी अनेको पद्यो में दूतियो और उनके माध्यम से नायक-नायिकायो के सयोग के सुन्दर चित्र मिलते हैं । रयणावली के दूतीवचनो और एतदर्थ चियित प्रेम प्रसगो में प्राय अभिवेयता का ही बोलवाला है । 'गाहासत्तसई' 'ग्रामिप्तसती' 'अमरुणतक तथा रीतिकालीन ग्रन्यो की भाति इसके पद्यो मे प्राय प्रतीयमानता नहीं है । 'रयणावती' का शृगार-चित्रगा सामान्य वर्ग के नायक-नायिकानी से सम्बन्धित है, अत उमम भगिमा नहीं है। यद्यपि इममे हेमचन्द्र के कवित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है फिर भी देशी शब्दो का उदाहरण प्रस्तुत करने के चक्कर मे दे अधिक रहे हैं । भावो की अतिशयता के द्योतन मे कम ।
विविध नायिकाएं और उनके अभिसार चित्र
‘रयणावली' के शृगारिक पद्यो में अभिमार के ही चित्र अधिक है । इममे चित्रित नायिकायो को शास्त्रीयता के प्राधार पर व्यास्यायित करना भी कठिन होगा । क्योकि यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि हेमचन्द्र का उद्देश्य मावगभित पद्यो की रचना करना न होकर देशी शब्दो का उदाहरण देना रहा है । इन उदाहरणो के सयोजन मे कवि ने उच्च कोटि के भावात्मक पद्यो की रचना की है। यह वहुत कुछ अप्रयतित ही लगता है। 'रयणावली' की नायिकाए गाव की मावारण कृपक एव गोप बालाए हैं । इनके अतिरिक्त कई जगह कुलटायो और वेश्याओ की भी चर्चा हैं । गोपवन्बू का एक अत्यन्त मादक-चित्र द्रष्टव्य है -
उग्रचित्तारण उपहारीण मग्गोमिल्लरायणाण । उरुसोस्ल ऊरवसणो तरुणाण कुणइ उवउज्ज || 11921108
'दोहन कार्य से निवृत्त, मार्ग की ओर दत्त दृष्टि, दुध दुहने वाली स्त्री के । जघन वस्त्र को प्रेरित कर वायु तरुणो पर बहुत बडा उपकार कर रहा है।' कुलटा स्त्री का एक चित्र देखने योग्य है
ताडिअयपर वाल कुलडा तालाइ भोलविन जाइ । तारत्तरेण तामरतामरसे सरिज तूहम्मि ।। 5110110
'रोते हुए वच्चो को लाजा (लावा) आदि से फुसलाकर कुलटा स्त्री सूर्य के । डूब जाने पर नदी के किनारे (अभिसार हेतु) जाती है ।