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पर किया है-प्रथम वर्ग की 81 वी, 144 वी, और 157वी गाथा की वृत्ति मे । अवन्तिसुन्दरी नाम काफी भ्रामक है। कुछ लोग इसे धनपाल की बहिन "सुन्दरी" बताते हैं जिसके शब्दज्ञान के लिए धनपाल ने "पाइअलच्छीनाममाला" की रचना की थी। परन्तु वहा (पाइअलच्छीनाममाला) मे प्राप्त उल्लेख को देखते हुए सुन्दरी इतनी विदुपी नहीं हो सकती कि आचार्य हेमचन्द्र जैसा विद्वान् अपने कोश मे उसकी चर्चा करे । कुछ विद्वान् “अवन्तिसुन्दरी" को राजशेखर (कश्मीरी कवि) की पत्नी बताते हैं । “कपूर-मजरी" मे एक अवन्ति सुन्दरी की चर्चा पाती भी है जिसकी आज्ञा से इसका अभिनय किया गया था। यह सम्भावना सत्य के अधिक निकट है। 3 गोपाल
इन्होने श्लोको मे एक देशीकोश की रचना की थी और सस्कृत मे इनका अर्थ भी दे दिया था । देशीनाममाला मे हेमचन्द्र इनका उल्लेख 1-25, 31, 45, 2-82, 3-47, 6-26, 45,72,7-2,76, 8-1,16, तथा 67 में करते हैं। अन्य देशीकारो ने भी इनका उल्लेख किया है । 4 देवराज :
इन्होने एक छन्दबद्ध देशीकोश की रचना की थी। हेमचन्द्र की ही भाति इन्होने भी देशी शब्दो के प्राकृतपर्यायवाची दिये हैं। हेमचन्द्र इनका उल्लेख तीन जगह 6-58, 72 तथा 8-17 मे करते है। प्रथम दो स्थानो पर हेमचन्द्र इनके मत का समर्थन करते है परन्तु अन्तिम 8-17 मे उन्हे देवराज का मत मान्य नही है । देवराज द्वारा लिखा गया कोश प्रकरणो मे शब्द की प्रकृति के आधार पर विभाजित है। 5 द्रोण
___ ये भी एक देशी कोश के रचयिता के रूप मे उल्लिखित है परन्तु इनके अन्य के बारे मे अब तक कुछ पता नहीं चला है । हेमचन्द्र इनका उल्लेख एक जगह (8/17) मे अपने मत का समर्थन करने के लिए करते है 1-18,50 तथा 6-7 मे हेमचन्द्र इन्हे अपने मत का समर्थन न करने वाले प्राचार्य के रूप मे उल्लिखित करते है। 6. धनपाल:
धनपाल ने एक शब्दकोश की रचना की थी। इसके अतिरिक्त उनके
1. पाइअलच्छीनाममाला।