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अर्थ की दृष्टि से अत्यन्त क्लिष्ट और साहित्यिक दृष्टि से सर्वथा महत्त्वहीन हैं । पिशेल अपनी कठिनाई व्यक्त करते हुए कहते है कहीं-कहीं तो ये पद्य इतने क्लिष्ट है कि मुझे अाज नक भी समझ मे नही पा सके । इन पद्यो मे आये हुए शब्दो का सही-सही अर्थ लग जाने पर भी इनका प्राशय समझना अत्यन्त दुरूह कार्य है।
पिशेल की इस कदु पालोचना को उनकी अपनी कमी बताते हुए प्रो० मुरलीवर बनर्जी ने अपने द्वारा सम्पादित 'देशीनाममाला" की भूमिका मे यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि यदि इन उदाहरणो को शुद्ध करके पढा जाये तो इनसे अत्यन्त रमणीय अर्थ ध्वनित होता है । ' पिशेल की सबसे बडी कमी यही है कि उन्हें पद्यो के पाठ के बारे में अनेको भ्रान्तिया है। इन्ही भ्रान्तियो के कारण पद्यो का अर्थ भी स्पष्ट नहीं हो पाता । उन्होने कई उदाहरण देकर पिशेल के द्वारा की गयी भूलो की ओर सकेत भी किया है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है
प्रथम वर्ग की 22 वी गाथा का 20 वा उदाहरण पिशेल के द्वारा निम्न प्रकार पढा गया है
अम्माइग्राइ दिण्णावहेन तुहरे अवत्थरारिहइ ।
णावलिअ ज जाव य रसेण त किसलियो असोउ हव ।। प्रो० मुरलीधर बनर्जी द्वारा शुद्ध किया गया पाठ इस प्रकार है
अम्माइसाइ दिस्मावहेन तुहरे अवत्यरारिहइ ।
नावलिय ज जावयरसेण त किसलियो असोउव्व ॥ छाया-अनुमार्ग गामिन्या दत्तोनुकम्पा तवरे पादाघातम् नूनम् ।
नासत्य यत् यावक रसेण त किसलितो-अशोक इव ॥ पिशेल ने इस पद्य मे "याव" और "य" अलग करके पढा था । अत उसकी छाया "यावच्च" करने पर अर्थगत कठिनाई स्वय ही उत्पन्न हो जायेगी। यदि इन दोनो को मिलाकर पढा जाये तो "या वक" शब्द बनेगा। ऐसा कर देने पर यहा एक रमणीय अर्थ की व्यजना होती है।
___ नायक और नायिक आगे पीछे चले आ रहे हैं। नायक अत्यन्त प्रसन्न वदन दिखायी दे रहा है। नायक की इस प्रसन्नता का कारण कोई अन्य व्यक्ति वताता है
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Introduction to Desinammala by MD Banerjee I Part.