________________
42
1
कुमारपाल के प्रारभिक शासनकाल मे केवल "रयणावली" की कारिकायो का निर्माण हुआ रहा होगा। व्याख्या और उदाहरण वाद के होगे । योग शास्त्र और वीतराग स्तोत्र के मूल पाठ की रचना डा वूलर वि स 1216 (1160 ईसवी) मे मानते हैं । इसकी व्याख्या कुछ वर्षों वाद लिखी गयी होगी ।।
त्रिपप्टिशलाकापुरुपचरित की रचना वि स 1216-1229 (1160-1173) मे हुई होगी। द्वयाश्रय काव्य के अन्तिम पाच सर्गों प्राकृत द्वयाश्रय काव्य या "कुमारपाल चरित" की रचना का भी यही समय रहा होगा। प्रमाण मीमासा की रचना भी इसी समय के बीच हुई होगी।
सक्षेप में प्राचार्य हेमचन्द्र की रचनायो को तिथिक्रम की दृष्टि मे दो भागो मे वाटा जा सकता है। (1) सिद्धराज जयसिंह के शासनकाल में की गयी रचनाए इसके अन्तर्गत शब्दानुशासन, उनके प्रसिद्ध दो सस्कृत के कोष-ग्रन्थ तथा दयाश्रयकाव्य के तेरह सर्ग रखे जा सकते हैं । (2) कुमारपाल के शासनकाल में की गयी रचनाए-इसके अन्तर्गत देशीनाममाला, निघण्टुकोश, प्राकृत दयाश्रयकाव्य, त्रिषष्टिशलाकापुम्पचरित, प्रमाण मीमासा, योगशास्त्र, वीतराग स्तुनि आदि रखे जा सकते हैं।
___ प्राचार्य हेमचन्द्र एक मिद्ध पुरुप थे। अपने जीवन काल मे उन्होने जितने विपुल वाट् मय की रचना की वह भारतीय साहित्य परम्परा के लिए अनूठा उदाहरण है । इन्होंने जिम किसी विषय को उठाया समस्त अगो सहित उसका अच्छी तरह प्रतिपादन किया। उनकी इस अद्भुत प्रतिभा एव दुर्लभ मनोयोग को देसकर उनकी कलिकालसर्वज की उपाधि सर्वथा उचित दिखायी देती है। भारतीय माहित्य परम्परा प्राचार्य हेमचन्द्र सूरि की चिर ऋणी रहेगी।
1. मार माफमाः , १0 40