Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 8
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। . . *************************************** दशविधि धरम धरै जो कोई, करम नाशि फिर दुख नहिंहोई। धरम जु साधन और न कोई, यों दश धर्म जजौं मद खोई॥ धरम जीवका पालनहारा, धरम मानका खण्डनवारा। धरम थकी जावै कुटिलाई, इमि दश धर्म जजौं चितलाई॥ सांच वचन सम धरम न आनौ, धर्म भाव निर्मल पहिचानौ। धर्म जीवरख इंद्रिय जीतं इमि लखि धर्म जजौं करि प्रीतं॥ तप ही सर्व धर्मका मूला, त्याग धरमतें क्षय अघ थूला। धर्म नगन सम और न कोई, इमि दश धर्म जजौ मद खोई॥ नारी त्याग धरम शिवदाई, ये दश धरम जगतमें भाई। जो दश लक्षण मनमें आनै, सो भव तप हर शिवपद ठाने । दश लक्षण व्रत इह विधि कीजै, उत्कृष्टै दश वास करीजै। नातर बेले पारन भाई, तथा इकंतर वास कराई॥ शक्ति हीन है तो सुन मीता, दश एकान्त करौ धरि प्रीता। व्रत दश बरस करै मन लाई, करु उद्यापन मन वच काई॥ नहीं उद्यापन शक्ति तुम्हारी, तो दूनौ व्रत करु सुखकारी। पीछे यथाशक्ति खरचावै, पूजन धर्म उद्योत करावै॥ दोहा- इत्यादिक विधि सहित जो, धर्म करै दश सार। पावै सुख मन भावनो, अनुक्रम ले भव पार ॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यः पूर्णायँ निर्व. स्वाहा। . इति समुच्चय पूजा। . १-जीवकी रक्षा। २- आकिंचन्य धर्म। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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