Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 46
________________ लक्षण मण्ड ************************************** ४४] श्री दशलक्षण मण्डल विधान। (उत्तम तपो धर्म पूजा) ... अडिल्ल -छन्द। अन्तर बाहर भेद कहे तप सारजी। दुविध भाव अघहार करन भव पारजी॥ तप बारह परकार कर्म गज के हरी। ___ मैं पूजौं इस थानि जानि नित शुभ धरी॥ ___ॐ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्माङ्ग ! अत्र अवतर२ संवौषट् । अ तिष्ठ२ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट्। अथाष्टकम्। (चौपाई।) भवजलतरण नाव तप भाव, करि अघनाश जु दैव उछाव ऐसो तप निर्मल जल लाय, पूजौं जामन मरण नशाव। ___ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.। त्रिभुवन में तप तिलक समान, याको मुनि धरै हित ठान तपहर चन्दन सुभग मँगाय, मैं पूजौं भव तप नशि जाय। ____ ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय संसारताप-विनाशनाय चदनं नि.। बेसरी छन्द। तपपै निरत लखे बहुतेरे, तपको जपै जु साहब मेरे ऐसो तप अक्षत शुभ आनो,पूजौं फल अक्षय उपजानो। ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय अक्षयपदप्राप्तयेऽक्षतान नि.। पद्धडी छन्द यह तप त्रिभुवन में पूज्य सार, यह तप नाना मंगल सुधार ऐसो तप बहु शुभ फूल लाय,मैं पूजौं तसु फल मदन जाय। ___ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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