Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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बेसरी छन्द ।
जिन गुण सम्पति है तप मीता, त्रेसठ वास होय जिन गीत भिनर तिथियनमें सुखदाई, यह तप अनशनजजिगुणगाई ॐ ह्रीं जिनगुणसम्पत्ति तपोधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. । कर्म क्षपण तपके उपवासा, इकसो अड़तालिस जिन भास भिन२ तिथियनमें सुखदाई, यह तप अनशन जजि गुण गाई ॐ ह्रीं कर्मक्षपणतपोधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. ।
जोगी रासा ।
सिंह निष्क्रिडित तप दिन सौ, अरु जान सतत्तरिभा तिनमें इकसौ जानि पैतालिस, वास कहै सुखदाई
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बाकी बत्तिस जानि पारणा यह विधि जिन धुनिमांह यह अनशन तप जानि जजौं मैं अर्घ लेय हित ठांहीं ॐ ह्रीं सिंहनिष्क्रीडित तपोधर्माङ्गायार्घ्यं नि. ।
भद्र सर्वतो तपके शुभ दिन एक सैकड़ा जाने है उपवास पचत्तर अद्भुत पारण पचविस मानों
इसकी विधि भिनर जिन भासी सो तप अनशन गाय अर्घ लेय मैं पूजौं मन वच काय भक्ति जुत भाया ॐ ह्रीं सर्वतोभद्र- तपोधर्माङ्गायार्घ्यं नि. ।
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महा सर्वतो भद्र बडो तप दिन दोसै पैंताल इकसौ छिनवै वास कहे जिन पारण गिन नव चाली
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