Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
View full book text
________________
७० ]
***
श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
*********
बार बार तिय देखन चाहै, जाके उर अवलोकन दाहै। जाके उर यह सर नहिं होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥
ॐ ह्रीं अवलोकनकामबाण-वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । ये चाहै पै ताहि न भावै, हास्य वचन कहि ताहि रिझावै । यह शर काम तहां नहिं होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ .
·
ॐ ह्रीं हास्यकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । परगट वचन कहन नहिं पावै, सैन करै तिय जिय ललचावै। जाके यह शर काम न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥
ॐ ह्रीं इङ्गितचेष्टा- वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कामदेव जब अधिक सतावै, मिलै तिया नहिं प्राण गमावै । शर काम जहां नहिं होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥
ॐ ह्रीं मारणकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । दशविधि कामबाण नशि जाई, शील बाड़ि पाले नवधाई । सो जिय शिवसुंदरिकों जोवै, ब्रह्मचर्य जजिं सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं शुद्धब्रह्मचर्य - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. स्वाहा ।
Jain Education International
दोहा - शील शिरोमणी जगतमें, सकल धरम शिरमौर । शिवकर अघहर पुण्यभर, जजौ शील गुण ठौर ॥ शील सिद्ध थलका मग जानो, शील सुरग सरिता मन आनो शील भावतै अघ नशि जाई, सांचा धर्म शील है भाई ॥ शील मनुज भवमें ही गाया, नहिं निज जन्म सफल करि भाया शील समुद्र संसार तराई, सांचा शील धर्म है भाई ॥ शील सहाय करे जग जाकी, सुरनरसेव करत हैं ताकी । ताको नाम लेत दुख जाई, सांचा धरम शील है भाई ॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76