Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 73
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। [७१ *************************************** शील सती सीताने धारौ, अग्निकुण्ड शीतल करि डारौ। शील प्रभाव जगत पुजवाई, सांचा धरम शील है भाई॥ शील सती द्रोपदिने धारौ, ताफल कीचक भीमविदारौ। भूप हरी पीछे फिर आई, सांचा धरम शील है भाई॥ शील सती नीली मन आनौ, सुरनर पूज भईजग जानौ। दोष सकल जातै नशि जाई,सांचा धरम शील है भाई॥ शील गुणवती कन्या लीनों, ताको देव सहाय जु कीनों। शील विरततै सुरगति पाई, सांचा धरम शील है भाई॥ शील सती सोमाने धारा, ताफल सर्प भयो मणि-हारा। जग जस ले सुरलोक सिधाई,सांचा धरम शील है भाई॥ सेठ सुदर्शन यह व्रत कीनो,पुण्य प्रताप सुयश जगलीनो। शील सुरेन्द्र सिद्ध पद दाई, सांचा धरम शील है भाई॥ ॐ ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गाय-महायँ नि.। समुच्चय जयमाला। धरम जगतमें सार, उत्तम क्षमा जु आदि दे। भवदधि तारनहार, नमों धरम दशलक्षिणी॥ क्षमा धरम सब जगमें आला, निज परिणतिको है रखवाला। क्षमा रतन गुण रतन भंडारो, मोकू भवसागरतै तारों। मार्दव धरम सकल गुण वृन्दा, मान विहंडन शिवसुखकंदा। मार्दव गुणते विनय प्रसारौ, मोकू भवसागर” तारो॥ आर्जव रीति सकल सुखदानी, सरल स्वभाव कुटिलता हानी। आर्जव शिवपुर पंथ सहारो,मोकू भवसागरतें तारो॥ सत्य धरम सम सार न कोई, सत्य धरम जिन भाषित होई। सत्य सकल संतनिकू प्यारो,मोकू भवसागरतें तारो॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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