Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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शौच धरम निर्मलता होई, शौच धरम सब विधि मल खोई । शौच धरम शिवमंदिर द्वारो, मोकूं भवसागरतैं तारो ॥ संयम मन इन्द्रियवश लावै, त्रस थावरके प्राण रखावे । संयम भाव सदा उर धारो, मोकूं भवसागरतैं तारो ॥ तप सब आशा पाशी तोरै, कर्म अनादि बंधको छोरै । तप जलतै ह्वै अघ मल न्यारो, मोकूं भवसागर तारो ॥ त्याग पाप मल धोवनहारा, त्याग धरम उर करै उजारा । त्याग भावतै कर्म निवारो, मोकूं भवसागरतैं तारो ॥ नगन मोक्षका बड़ा निशाना, नगन बिना नाहीं शिवथाना । आकिंचन वृष नगन विचारो, मोकूं भवसागरतैं तारो ॥ ब्रह्मचर्य शिवनारी मिलावै, ता बिन जीव जगत भरमावै । ब्रह्मचर्य थिर मन धारो, मोकूं भवसागरतैं तारो ॥ ऐसे दश विधि धरम पियारा, जन्म- रोग - ह औषधि सारा । 'टेक' धरम निजपर निरवारो, मोकूं भवसागर तारो ॥ दोहा - आतम अवलोकन धरम, दशविधि धरि मनलाय ।
जल फलादि वसु द्रव्यतैं, धरम जजौ हरषाय ॥ दशविधि धरम उपायकै, भवसागर तिरि जाय । मनवांछा मेरी यही भव भव होय सहाय ॥
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि- ब्रह्मचर्य - पर्यंत दशलक्षण धर्माङ्गायपूर्णा नि. । इत्याशीर्वादः ।
फिर १०८ जाप्य देकर आरती करके शान्ति विसर्जन करे । इति दशलक्षण मण्डल विधान
[ समाप्त ]
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