Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 71
________________ [६९ *** वा शील धेरै जो कोई, ताके ब्रह्मचर्य व्रत होई । इस व्रततै भव तरनो होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ श्री दशलक्षण मण्डल विधान । ******************** ॐ ह्रीं नवधाशील पालनोत्तमब्रह्मचर्य धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कामदेव वश तन तप होई, जिमि तरु होय तुषार दसोई । यह शोषण शर काम न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं शोषणकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कामबाण जाके मन माहीं, मन संताप रहे अधिकाई । काम बाण संताप न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं संतापकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । काम बाण उच्चाट करावै, रहै उदास कछु न सुहावै । उच्चाटन शर काम न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं उच्चाटनकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कामीजनको काम सतावै, ता वश ताहि न कछु सुहावै । वशीकरण शर बाण न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं वशीकरणकामबाण-वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कामदेवतै गहल जु होई, सुधि बुधि ताहि रहै नहिं कोई। सो मोहन शर काम न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खावै ॥ ॐ ह्रीं मोहनकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । ये शर काम कहे लौकीका, सबतै बडौ मोह रिपु जीका । जहँ ये पांच बाण नहिं होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ Jain Education International - ॐ ह्रीं पंचप्रकारकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । रूप तियाको लखि मुलकावै वृथा पाप शिर माहिं चढ़ावै । ये शर ताके मांहि न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं मुलकनकामबाण - वर्जनोत्तमब्रह्मचर्य धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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