Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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तप शिव वाट दिखावन दीवा, तपहीतै सुख होय अतीवा । तपतैं इन्द्री मन भट हारै, तप निज बलतैं मोह निवारें । तपको कायर जिय नहिं पावैं, तपको महत पुरुष उमगावै । अविचल तपतै सुख बहु होई, तपतै लच्छि अखै पुनिजोई ॥ तपतै खानपान परमाना, तपहीतै रस बिन सब खाना । दिढ़ आसन तन तपतै जानों, काय कष्टतैं जिय सुख जानों । तप ही लगे पापको धोवै, तपतैं विनय भाव उर होवै ॥ धरमी काय तनी सुश्रुषा, तप ही करवावै अघ - लूसा । शास्त्र पठन है तप सुखकारा, यातै होवै वपुतैं न्यारा ॥ तप ही मन इन्द्रिय वश आनै, ध्यान धरत वसु कर्म हराने। यातै तप लागत है प्यारा, शुद्ध भावतै है अघ छारा ॥
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दोहा तप मेटत भव तापको, शान्त भाव दिढ़ होय । हरै भरम देवै धरम, सो तप पूजौं लोय ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तम तपोधर्माङ्गाय पूर्णार्घ्यं निर्व. । इति उत्तम तप-धर्म पूजा ।
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