Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 60
________________ ५८ ] ***** श्री दशलक्षण मण्डल विधान । *************** उत्तम आकिंचन्य धर्म पूजा Jain Education International आकिंचन वृष नगन अवस्था है सही । तामें दुविध परिग्रह त्याग सु धुनि कही ॥ धन धान्यादिक बाह्य राग अन्तर गिनो । इनतैं रहित सु नगन धरम जजि अघ हनो ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्ग ! अत्र अवतर२ संवौषट् । अत्र तिष्ठर ठः ठः । अत्र मम सिन्नर्हितो भवर वषट् । अथाष्टकं त्रिभंगी छन्द | जल लाया नीका सुरतरिणीका उज्जवल ठीका धार करी । अति गंध सुहाई निर्मल भाई हर्ष बढ़ाई पाप हरी ॥ ले कनक सु झारी भक्ति उचारी भव दुखहारी हाथ लई । आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थानसही ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि. । शुभ चन्दन आनी घसि सँगपानी गन्ध सुहानी हाथ धरि । अलि ऊपर आवै वासु लुभावै शुद्ध करावे नेह भरी ॥ एसी गंध लावो हरष बढ़ाओ ज्ञान जगावो मोक्ष मही । आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थानसही ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. । शुभ अक्षत लाया विमल सुहाया खंडें बिन भाया सुखदाई। मुकाफल जानौ अधिक सुहानो गंध सुथानौ गह भाई ॥ ** For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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