Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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५६ ]
श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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संग परिजन मनो हाट मेलौं बनो । धर्मशाला विषै तीर्थयात्री मनो॥
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जानि गृह मोहकी सांकली है सही । मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लही ॥ ॐ ह्रीं गृहकुटुम्बममत्वत्याग - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । मूल वसु कर्मको कषाय भाव मानिये ।
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तासुके प्रसंग चार योनीमें भ्रमानिये ॥ सकल संसारका भार यह ही सही ।
मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लही ॥ ॐ ह्रीं कषायभावत्यागधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । राग अरु द्वेष दोय मोह विधितैं बने ।
तासु वश जीव जगमें लहै दुख घने ॥ पाप पुण्यको प्रसार तासुतैं ही सही ।
राग द्वेष मोहको सु त्याग पूजि शिवलही ॥ ॐ ह्रीं श्री रागद्वेषत्यागधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । मात सुत नारि धन राज तन सारजी ।
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राग अरु द्वेष सर्व दुःख कर्तारजी ॥ पाप पुण्य धारि संसार दुख धाम ही ।
मोह तजितासुको सु पूजि त्याग शिव लही ॥ ॐ ह्रीं ममत्वत्याग - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । जयमाला । (दोहा।)
त्याग तरण तारण सही, भव सागरमें नाव । त्याग बने नहिं देव पै, मनुज लह्यो यह दाव ॥
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