Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
विधान! ........५५ कौन का को भयो सर्व स्वारथ सही।
मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लही। ____ॐ ह्रीं पितृममत्वत्याग-धर्माङ्गायायँ नि.। पुत्र रूपवंत पूर्व पुण्यतै लहाइये।
पापके विपाकतें सुशीघ्र नशि जाइये ॥ मोहवश होय जिय लहै दुख धाम ही।। ___ तासुको ममत्व त्यागधर्म पूजि शिव लही।
ॐ ह्रीं पुत्रममत्वत्याग-धर्माङ्गायायँ नि.। पाप साजि राज काज भाग्य” लहाइये।
तासु रक्षोपहार में स्वतन गमाइये ॥ भोग परिजन करै आप स्वभ्र धाम ही।
मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लही॥ ___ॐ ह्रीं राज्यममत्वत्याग-धर्माङ्गायार्घ्य नि.। रत्न सुवरण रजत आदि धन पाइये।
घोटका विमान वाहनादि हूं लहाइये। जानि चपला समान अथिर दुखधाम ही। __ मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लही।
ॐ ह्रीं धनवाहनादिममत्वत्याग-धर्माङ्गायायँ नि.। सहस छिनवै तिया जानि अपछर जिसी।
विनय भरपूर रुपरंग रंभा जिसी। जानि सम्पति सकल पाप विपदा महीं।
मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लहो॥
ॐ ह्रौं स्त्रीममत्यत्यापा-धामीझाल्यार्थी मि.॥
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