Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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ऐसी करि लीनी धूप नवींनी, भक्ति सुभीनी भावमई आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही ।
ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं नि. । फल लौंग सुपारी श्रीफल भारी भक्ति भरारी गह आनौ फिर लाय बदामा खारिक ठामा, वांछित कामा फल जानौ एसो फल लायो अति हरषायां मुख गुन गायो पुण्य लही आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही। ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि. । जल चंदन लाया अक्षत भाया फूल मंगाया चरु जु धरी ले दीपक थारा धूप अपारा श्रीफल धारा अर्घ करी वह द्रव्य जु लाये भक्ति बढ़ाये ज्ञान सु पाये ध्यान नही आकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय अनर्घपदप्राप्तयेऽर्घ्यं नि. । प्रत्येकार्थ्याणि ( मणुयणानंदकी चाल । स्वर्ग जग है अथिर ध्रौव्य नहिं मानिये ।
तात माता तिया भ्रात सुत जानिये ॥ चक्रवर्ती तने भोग क्षय जायजी ।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं अनित्यरूपोत्तम आकिञ्चन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. । आयु पूरन भये शर्ण नहिं कोय जी । औषधी मन्त्र बल तन्त्र बहु होयजी ॥
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