Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 65
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। [६३ *************************************** चार विधि दान अरु धर्म दश ध्यायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥११॥ ॐ ह्रीं धर्मरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। गैर वस्तुको जु है सुलभ अपनावना। ज्ञान निधि आपनी न सहज ही लहावना॥ ताही पाय साधु शुद्ध आत्मरुप ध्यायजी। धर्म आकिंचना पूजि. भक्ति भायजी ॥१२॥ ___ ॐ ह्रीं बोधिदुर्लभरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अयं नि.। भ्रात सुत नारि गज घोटकादि भाई है। दास दासी पिता सुतादि परिजनाइ है। संग चेतन तजो जानि दु:खदायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥१३॥ ॐ ह्रीं चेतनरुपब्रह्म परित्यागआकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि.। रत्न कंचन रजत ठाम वस्तर सही। ___ महल वन बाग बहुग्राम जुत शुभ सही। संग निर्जीव छांड़ि शुद्ध रूप ध्यायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥१४॥ ॐ ह्रीं अचेतनरूप बाह्यपरित्याग आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। अंतरंग संग राग आदि अरु द्वेष है। या थकी जीव लहै चार गति क्लेश है। जानि यह अंतरंग संग छुड़वायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥१५॥ ॐ ह्रीं अन्तरंगपरिग्रहत्यागाकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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