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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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जोग मिथ्यात्व अव्रत कषाय जानिये । और परमाद भाव कर्म आठ मानिये ॥ त्यागि दुर्भावसाधु शुद्ध रूप ध्यायजी ।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥७ ॐ ह्रीं आस्रवरूपोत्तम आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. । अन्यतैं विरक्त है जु आपरूप ध्यावही ।
राग द्वेषको विहाय शुद्ध तत्त्व पावही ॥ भाव संवर यही जानि सुखदायजी ।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति गायजी ॥८ ॐ ह्रीं संवररूपोत्तम आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. । पाप पुण्य भावतै जु कर्म बन्ध है सही।
शुद्धता प्रभाव कर्म जाय निर्जरा लही ॥ जानि इस भांति बिन राग पद ध्यायजी ।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥९ ॐ ह्रीं निर्जरारूपोत्तम आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. । तीन लोक नित्यरुप जानि नराकारजी ।
चार गति घूमि जीव दुःख ले अपार जी ॥ लोक को स्वरुप जानि आत्मतत्व ध्यायजी ।
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धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥ १० ॐ ह्रीं लोकरूपोत्तम आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि. । वस्तुको स्वभाव धर्म जीव रक्षा कही । दर्श बोध आचरण जु रत्न तीनो सही ॥
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