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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
व खग शर्न नहिं मर्न दिन आयजी।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥२॥ ॐ ह्रीं अशरणरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। पन्यतै प्रिति संसार सो है सही।
या थकी राग अरु द्वेष उपजै मही॥ गरुख चारि गति माहिं दुखदायजी।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥३॥ ॐ ह्रीं संसाररूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। व एकहि फिरै चार गति आपही।
एक भोगै सदा पुण्य या पापही॥ कोउ नहिं दुसरो आप दुःख पायजी।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥४॥ ॐ ह्रीं एकत्वरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। र्व द्रव्य भिन्न कोई मिले न जानिये।
नीर क्षीर के समान जीव देह मानिये॥ नि इमि साधु निर्ग्रन्थ सुख पायजी।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥५॥ ___ ॐ ह्रीं अन्यत्ररूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। ह में पवित्र वस्तु एक नहिं पाय हैं।
सप्त धातु भरी द्वार नौ बहाय हैं। व निर्मल महा शुद्ध चेतनायजी।
धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥६॥ ॐ ह्रीं अशुचिरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.।
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