Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 63
________________ [६१ :************************************* श्री दशलक्षण मण्डल विधान। व खग शर्न नहिं मर्न दिन आयजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥२॥ ॐ ह्रीं अशरणरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। पन्यतै प्रिति संसार सो है सही। या थकी राग अरु द्वेष उपजै मही॥ गरुख चारि गति माहिं दुखदायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥३॥ ॐ ह्रीं संसाररूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। व एकहि फिरै चार गति आपही। एक भोगै सदा पुण्य या पापही॥ कोउ नहिं दुसरो आप दुःख पायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥४॥ ॐ ह्रीं एकत्वरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। र्व द्रव्य भिन्न कोई मिले न जानिये। नीर क्षीर के समान जीव देह मानिये॥ नि इमि साधु निर्ग्रन्थ सुख पायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥५॥ ___ ॐ ह्रीं अन्यत्ररूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। ह में पवित्र वस्तु एक नहिं पाय हैं। सप्त धातु भरी द्वार नौ बहाय हैं। व निर्मल महा शुद्ध चेतनायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥६॥ ॐ ह्रीं अशुचिरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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