Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 59
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। • * ** * * * ** * * * ** * * * * * * * * ** * ** * * ** * ** * * * * * बेसरी छन्द। त्याग जोग सबही संसारा, पुद्गल द्रव्य त्याग निरवारा। त्याग रतन कंचन भंडारा, जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ हाथी घोटक रथ सब त्यागा,साधु आप आतम रस लागा। मात ताततैं नेह निवारा, जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ त्याग राज बन्धन दुखदाई, नारि पुत्र नेह तुड़ाई। अनुभव रस मारग विस्तारा जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ आरत भाव त्यागि दुखदाई, त्याग योग्य सब मान बड़ाई। रौद्र ध्यान त्यागै अधिकारा, जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ क्रोध मान छल लोभ गमावै, सो उत्कृष्टा त्याग कहावै। हास्य शोक भय भाव निवारा, जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ मद मत्सरको त्याग कराया, त्याग अरति रति बिसन बताया। राग द्वेषका तजै प्रसारा, जो त्यागै सो गुरु हमारा। परमें ममत त्यागिकै भाई, निज परिणतिमें प्रिति लगाई। त्याग पाप परिणतिकी धारा, जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ जगतै विरचित आप रस भीना, तिनने शिवमग नीकैचीना। त्याग जगत दुखतें सिर भारा,जो त्यागै सो गुरु हमारा॥ सोरठा- त्याग धरम तप सार, भव भव शरणो में गहों। जजौं त्याग भवतार, ता प्रसादः शिव लहों। ___ ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्माङ्गाय पूर्णार्घ्य नि.। इति उत्तम त्याग धर्म पूजा संपूर्ण। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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