Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 55
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। [५३ *************************************** थाल कंचन भरौ भाव शुभ लाइयो। त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो। ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.। पुष्प नाना प्रकार गन्धजुत सारजी। कल्पवृक्षादिके हेम थाल धारजी॥ माल करि सोहनी भक्ति उर लाइयो। त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो। ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं नि. । लाय नैवेद्य बिन खेद अति सोहना। ___मोदकादि सरल सार धार मन मोहना॥ स्वर्ण भाजन विर्षे भक्ति भर लाइयो। त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। रत्नमय दीप कर ज्योति परकाशिया। ___मोह अन्धकार तासु तेजते विनाशिया॥ हेमथाल धारि भक्ति भाव चित्त लाइयो। - त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि.। धूप दश गन्धकी सार सौरभि भरी। चन्दनादि ले कनक धूप-आयन धरी॥ अग्नि संग खेय मिस धूम विधि जाइयो। त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं नि. । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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