Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
श्रीफल सु लौंग पुंगीफल जु सारजी ।
खारक बादाम नारियल सु मनहारजी ॥ धारि स्वर्णपात्र में सु भक्ति उर लाइयो ।
त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि. । नीरगन्धाक्षतं पुष्प चरु सारजी ।
दीप अरु धूप फल अर्घ मनहारजी ॥ भक्ति भाजन विषै धारि चढ़वाइयो ।
त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय अनर्घ्यपदप्राप्तयेऽर्घ्यं नि. ।
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प्रत्येकार्थ्याणि । चाल मणुयणानन्दकी । कामदेव के समान काय सुन्दर घनी ।
सुभग आकार मनुदेव तनसी बनी ॥ जानि पुद्गलीक जिमि चपल चञ्चल सही ।
मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिवलही ॥ ॐ ह्रीं तनममत्वत्याग-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । मात रज मेल मिलि कर्म वश थायजी ।
गर्भमें रह्यो सु मास नव दुख पायजी ॥ दूध माँगे बिना न देइ निज मातही ।
मोह तजितासुकों पूजि त्याग शिव लही ॥ ॐ ह्रीं जननीममत्वत्याग- धर्माङ्गायायं नि. स्वाहा । बाप वीरज थकी आप मैलों भयो 1 कालाप्याय्य है जुदा ना सांगा त्ताको रयो ।
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