Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 56
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान । श्रीफल सु लौंग पुंगीफल जु सारजी । खारक बादाम नारियल सु मनहारजी ॥ धारि स्वर्णपात्र में सु भक्ति उर लाइयो । त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि. । नीरगन्धाक्षतं पुष्प चरु सारजी । दीप अरु धूप फल अर्घ मनहारजी ॥ भक्ति भाजन विषै धारि चढ़वाइयो । त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्माङ्गाय अनर्घ्यपदप्राप्तयेऽर्घ्यं नि. । ५४ ] ** प्रत्येकार्थ्याणि । चाल मणुयणानन्दकी । कामदेव के समान काय सुन्दर घनी । सुभग आकार मनुदेव तनसी बनी ॥ जानि पुद्गलीक जिमि चपल चञ्चल सही । मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिवलही ॥ ॐ ह्रीं तनममत्वत्याग-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । मात रज मेल मिलि कर्म वश थायजी । गर्भमें रह्यो सु मास नव दुख पायजी ॥ दूध माँगे बिना न देइ निज मातही । मोह तजितासुकों पूजि त्याग शिव लही ॥ ॐ ह्रीं जननीममत्वत्याग- धर्माङ्गायायं नि. स्वाहा । बाप वीरज थकी आप मैलों भयो 1 कालाप्याय्य है जुदा ना सांगा त्ताको रयो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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