Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 52
________________ ५० ] *** श्री दशलक्षण मण्डल विधान । **************** मन वच काय एक थान थिरि लाइये । आरत रौद्र कुभाव सबै ढाइये ॥ ** या वपुर्ते जिय भिन्न शुद्ध जानै सही । सो तप ध्यान अनूप पूजि लूं शिवमही ॥ ॐ ह्रीं श्री ध्यान तपोधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । इमि धारि तपके भेद बारह सकल कर्म विनाशियो । यह कर्म भूधर नाश कारण वज्रसम जिन भाषियो । मैं जीव चाहैं तरन भवदधि, ते लहैं तप सारजी हम शक्तिहीन न कर सकत, तातै जजै उर धारजी ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तम तपोधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । जयमाला । दोहा । Jain Education International तप तारैं भव उदधिसों, टारै पाप असाधि । धेरै महा सुख थल विषै, देहे ध्यान समाधि ॥ तप ही सार धरम है भाई, तप ही तै मुनिवर शिव पाई । सिद्धक्षेत्र जे सिद्ध सजै हैं, ते सब पहिले तपहि भजे हैं | तप भव उदधि तरण नवकाया, तपको जस गणधरनेगाया । ये तपही जग जिन सुखदाई, तात मात स्वामी तप भाई ॥ तपको तो तीर्थङ्कर ध्यावै, तप बिन मोक्ष कभी नहिं पावै । तप शिव महल तनों मग जानों, तपहीतैं सब कर्म हरानों । तपसा तीर्थ और नहिं कोई, तप ही तारन सब विधि होई ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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