Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 47
________________ . श्री दशलक्षण मण्डल विधान। ************************************** प सुर वंछे पै नाहिं पाय, तातै सुर पूजै तप सुभाय। सो तप चरु ले भक्ति लाय, मैं पूजौं तसु फल क्षुधाजाय॥ ___ ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। प कल्पवृक्ष वांछित सुदेई, तप दीप अनोपम तम हरेई। तपको दीपक रतन लाय, मैं पूजौं तसु फल ज्ञान पाय॥ ___ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि.। प ही तै तीर्थङ्कर जु होय, तप ही तैं शिव लहि कर्म खोय। ऐसो तपको शुभ धूप लाय, मैं पूजौं विधि ईधन जराय॥ ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय दुष्टाष्ट कर्मदहनाय धूपं नि.। सप पूजत जग करिपूज्य होय,तप औषधि दुखगद हरन जोय। ना तपको बहुविधि फलमंगाय,मैं पूजौं तसुफल शिवलहाय॥ - ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि.। नपरौं उर करुणा भाव होय, तप तपैं जगत में पूज्य सोय। ता तप को उत्तम अर्घ लाय, मैं पूजौं पद अनर्घ लहाय॥ ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय अनर्घ पदप्राप्तयेऽयं नि.। प्रत्येकााणि। गीता छन्द। . तप सार जगमें भेद बारह भव उदधिको नाव है। पाप दाहक तप करन हित साधु मन उच्छाव हैं। तप देय सुख दुख दूरि करि है, और कहँ लग गाइये। इमि जानि पूजौं अर्घ लेकर, तासु फल शिव जाइये॥ ... . ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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