Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 49
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। . [४७ *************************************** ताकी विधि जिन शासनमें लखि,विधिजुत करताभाई यह अनशन तप जानि जजौं मैं, अर्घ लेय हितदाई। ॐ ह्रीं महासर्वतोभद्र तपोधर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा । . लघु निष्क्रीडितके दिन जिन धुनि बीसी चारि कहे हैं। तिन में बीस जु कहे पारणा साठि उपास लहे हैं। करनेकी विधि जिन धुनिमें लखि ताको करिये भाई। यह तप अनशन जानि जजौं मैं अर्घ आनि सुखदाई॥ ॐ ह्रीं लघुनिष्क्रीडित तपोधर्माङ्गायायँ नि.। बेसरी छन्द। नव पारण उपवास पचीसा दिन चौंतीस कहे जगदीशा। मुक्तावलितपविधिजिनगाई,यहअनशनतपजजिसुखदाई॥ . ॐ ह्रीं मुक्तावली तपोधर्माङ्गायायँ नि.। मास मासके छह उपवासा, एक वरष दुइ सत्तरि खासा। यहकनकावलीविधिश्रुतगाई,यहतपअनशनजजिसुखदाई। ॐ ह्रीं कनकावलि तपोधर्माङ्गायायँ नि.। . सो अनशन पारन उनईसा, इकसौ उनईस दिन शुभ दीसा। जिन भाषित आचामल भाई,यह अनशन तपजजि सुखदाई ___ॐ ह्रीं आचाम्ल तपोधर्माङ्गायायं नि.। चौबिस वास. पारना चौई, सब दिन अड़तालीस गिनोई। तपजुसुदरशनविधिश्रुतजानो,यहअनशनतपजजिसुखदानी॥ . ॐ ह्रीं सुदर्शन-तपोधर्माङ्गायायँ नि. । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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