Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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४२] ***************************************
श्री दशलक्षण मण्डल विधान।।
जो प्रमादवश संयम जाय, प्रायश्चित ले पुनि थिर थाय। छेदोपस्थापन नामा सोय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥
ॐ ह्रीं छेदोपस्थापनारूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। दोय कोष नित गमन कराय, तन निहार नहिं बहु रिध पाय। सो परिहार विशुद्धी जोय, संयम धर्म जजौं शुचि होय॥
ॐ ह्रीं परिहारविशुद्धि संयम रूप धर्माङ्गायायँ नि.। सकल कषाय नाश है जाय,नाम मात्र कछु लोभ रहाय। सूक्षम सांपराय है सोय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥
ॐ ह्रीं सूक्ष्म सांपरायरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। सकल मोह नाशै जिस काल, या उपशमै मोह जंजाल। यथाख्यातमें रहे न मोह, संयम धर्म जजौं शुचि होय॥
ॐ ह्रीं यथाख्यातरूपसंयमधर्माङ्गायार्थ्यनि.।
- अडिल्ल छन्द। इस प्रकार बहु विधि को संयम जानिये।
शिव-सुखदायक होय दयाकी खानिये॥ पूरण मुनिके होय धर्म हितदायजी।
ताहि जजौं मैं अर्घ थकी यश गायजी॥ ॐ ह्रीं उत्तमसंयम धर्माङ्गाय महायँ नि.।
जयमाला। (बेसरी छन्द) संयम सार जगतमें भाई संयमतें जिय शिव सुख पाई। संखाम्म सबका साखानहास्या, संयम है शिास्त्मसाज हम्माता॥
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