Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
[४१
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सपरस इन्द्रिय विषय निवार, वीतरागता वरतै सार। शीत उष्ण उर चाह न होय संयम धर्म जजौं शुचि होय॥ ___ॐ ह्रीं स्पर्शनेन्द्रिय विषयवर्जनरूपसंयम धर्माङ्गायावँ नि.। रसनेन्द्रिय पांच भट जान, तिन वशभये सकल गुणखान। रसनेन्द्रियके वश नहिं होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥
__ॐ ह्रीं रसनेन्द्रियविषयवर्जनरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। घ्राणेन्द्रियके भट दुई जान,नित प्रसाद जिय दुख लहान। घ्रानेन्द्रियके वश नहिं होय,संयम धर्म जजौं शुचि होय॥
ॐ ह्रीं घ्राणेंद्रियविषयवर्जनरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। चक्षु विषय भट जानों पांच, ते दुख देय सकल जियसांच। चक्षु अक्षके वश नहिं होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥ ____ ॐ ह्रीं चक्षुरिन्द्रियविषयवर्जनरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। कर्णेन्द्रिय शुभाशुभ वैन, ता वश होय सुरासुर ऐन। शब्द शुभाशुभ वश नहिं होय, संयम धर्म जजौं शुचि होय॥ ___ॐ ह्रीं कर्णेन्द्रियविषयवर्जनरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। मन चंचल कपिकी गति जिसौ ताके वश जगजिय दुखफँसौ। मनके वश कबहूँ नहिं होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥
ॐ ह्रीं मनोविषयवर्जनरूपसंयम धर्माङ्गायावँ नि.। सब जियमें धरि समता भाव, तप संयम करिबेको चाव। आरत रौद्र भाव नहिं होय, संयम भाव जजौं शुचि होय॥
____ॐ ह्रीं सामायिक रूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि. ।
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