Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान। ***************************************
अगनि जलावन काज न करै, नाहिं बुझावै करुणा धरै। अगनिकाय जिय रक्षा होय,संयम धर्म जजौ शुचि होय॥
__ॐ ह्रीं अग्निकायजीवरक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। पवन कायकी रक्षा सार, पंखा आदि काज नहिं धार। पवनकाय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥ ____ॐ ह्रीं वायुकायिकजीवरक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायावँ नि.। फूल पात तरु तोड़े नाहिं, वन बागादि लगावै नाहिं। हरितकाय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥ ___ॐ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवरक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। इल्लो जोंक गिंडोला जान, बाला आदि जीव पहिचान। बे इन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥
ॐ ह्रीं द्वीन्द्रियजीवरूपरक्षणसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। चीटी कुंथवा खटमल लोक, जुआ तिबूला जिय करिठीक। ते-इन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं शुचि होय॥
ॐ ह्रीं त्रीन्द्रियजीवरक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.।। मक्खी भँवरा टीडी जान मच्छर आदिजीव पहिचान। चउ-इन्द्रिय जिय रक्षा होय,संयम धर्म जजौ मद खोय॥
ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रियजीवरक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। जीव असैनी बहुत प्रकार, जलचर सर्प आदि निर धार। पंचेन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं शुचि होय॥
ॐ ह्रीं असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव रक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.। नर सुर नारकि सब जिय संज्ञि,तिर्यंच गति में संज्ञि असंज्ञि। संज्ञी जियकी रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय॥ ___ॐ ह्रीं संज्ञीपंचेन्द्रियजीवरक्षणरूपसंयम धर्माङ्गायायँ नि.।
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