Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 40
________________ *************************************** ३८] ...... श्री दशलक्षण मण्डल विधान। ( उत्तम संयम धर्म पूजा ) . अडिल्ल छन्द संयम धर्म अनूप दोय विधि जानिये। इक रक्षा षट् काय दया उर आनिये॥ मन इन्द्रिय वश करै दूसरो संयमा। सो मैं पूजौं थापि लहौं उत्तम रमा॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयम धर्माङ्ग! अत्र अवतर२ संवौषट्। अत्र तिष्ठर ठः ठःस्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट्। . अथाष्टकम् बेसरी छन्द। निर्मल नीर भाव कर भीजै, मन मनोज्ञ बासन धरि लीजै। जिनको जन्म मरणगद जावै, सो संयम वृष जजि शिरनावै॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्माङ्गाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.। चन्दन शीतल भावन भाया, तापर मन भंवरा जु लुभाया। जग आताप तासु नशि जावै, सो संयम वृष जजि शिरनावै॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्माङ्गाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि.। शालि अखंड अखत ले भाई, शुभ परणति भाजन भरवाई। जो अखंड थानक ले धावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै॥ ___ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्माङ्गाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.। फूल प्रफुल्लित भाव सु लीजै, भक्ति तारमें माल करीजै। मदन वाण हरि सो बल पावै, सो संयम वृष जजि शिरनावै॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्माङ्गाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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