Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 38
________________ ३६] *** श्री दशलक्षण मण्डल विधान । ********************* मन्त्र दाता विपति मांहि मित्र सारजी । प्रेम अन्तरङ्ग धारि नित्य रहें लारजी ॥ जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै । पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धेरै ॥ १६ ॥ ॐ ह्रीं श्री मित्रानुबन्धवांछा-विहीन- शौचधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । मित्र तिय पुत्र सब घरतने दासिया । आदि परिजन सकल और घरवासिया ॥ जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै । पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धेरै ॥ १७॥ ॐ ह्रीं श्री सकलपरिजनानुकारित्ववांछा - विहीन- शौचधर्माङ्गायार्घ्यं नि. जयमाला दोहा शौच सकल उर सुख करै, हरै लोभ मद सोइ । मोक्ष धेरै मरनो टरै, ताहि जजैं शिव होइ ॥ *** शौच भावतैं पुण्य बड़ोई, कटै पाप जगमें जस होई । शौच भाव संतनको प्यारा, जजौं शोच यह धर्म हमारा ॥ शौच भाव पर - चाहे निवारै, शौच भाव दुख शोकविड़ारे । शौच सरवको बड़ा सहारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा ॥ Jain Education International शौच सांच के बड़ा सनेहा, शौच मुनिव्रत की इक देहा । शौच भाव मंगल करतारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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